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________________ 160... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण अध्ययनकाल में एक मोदक विकृति ग्राह्य है, शेष आगाढ़ सूत्रों के योग में सब विकृतियाँ वर्जनीय हैं। अनागाढ़ योग में विकृति वर्जन की भजना है। यदि गुर्वाज्ञा हो तो दसों विकृतियाँ ग्रहण कर सकते हैं अन्यथा एक भी ग्राह्य नहीं है।42 164. भगवतीसूत्र के योग में 77 कालग्रहण होते हैं उनमें से 75 कालग्रहण पूर्ण होने पर नित्य नीवि (पाँच तिथि आयंबिल) की अनुमति दी जाती है। 165. कालग्रहण में काल मांडला मोर पंख के दंडासन से किए जाते हैं। इसके द्वारा एक ही जगह पर स्थिर रहते हुए अलग-अलग स्थानों को शुद्ध किया जा सकता है। 166. कालिक सूत्रों के योग में ही संघट्टा-आउत्तवाणय ग्रहण किया जाता है। इनमें कुछ सूत्र संघट्टा वाले हैं तो कुछ सूत्रों में संघट्टा + आउत्तवाणय दोनों लिए जाते हैं। 167. संघट्टा एवं आउत्तवाण के आदेश हर दिन प्रात:काल में क्रिया के अंत में मांगे जाते हैं और सन्ध्या में क्रिया के अन्त में विसर्जित किए जाते हैं। 168. संघट्टा या आउत्तवाणय का आदेश सुबह में मांग लेने पर दिन में जब चाहें गोचरी या स्थंडिल हेतु डंडे की स्थापना करके संघट्टा ग्रहण कर सकते हैं और प्रयोजन पूर्ण हो जाए तब डंडा छोड़ देने से अपने आप संघट्टा का त्याग हो जाता है। आउत्तवाणय में भी ऐसा ही है। यह क्रिया दिन में कितनी भी बार कर सकते हैं। 169. हर सात (एक सप्ताह) दिन के जोग के बाद एक दिन बढ़ाने की आज्ञा योग ग्रन्थों के अनुसार है। एक दिन की वृद्धि होने पर जिस क्रम से तप चलता हो उसी क्रम से चलता रहता है, केवल वृद्धि दिन की क्रिया में जो आदेश मांगने होते हैं उनके शब्दों में कुछ फेरफार होता है। पूज्य रत्नयशविजयजी महाराज साहब के मतानुसार दिन वृद्धि की आज्ञा Compulsory penalty के रूप में होनी चाहिए। दूसरे, जैसे पाक्षिक आलोचना के रूप में उपवास का विधान है वैसे ही योग क्रिया के अन्तराल में ज्ञात-अज्ञात में कुछ त्रुटि हुई हो उसका सामूहिक रूप से निश्चित किया गया आलोचना दिन प्रतीत होता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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