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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...153 काल में भी दिये जा सकते हैं, किन्तु प्रवेदन और स्वाध्याय प्रस्थापन आदि अनुष्ठान प्रातः काल में कर लेने चाहिए। 105. सेनप्रश्न में कहा गया है कि पूर्वकाल में योगोद्वहन करने के बाद साधुजन द्वादशाङ्गी का अध्ययन करते थे। किसी ने योगवहन किये बिना भी द्वादशांगी का अध्ययन किया, शास्त्रों में ऐसे उल्लेख मिलते हैं, परन्तु यह आगम व्यवहारी की अपेक्षा से जानना चाहिए। आगम व्यवहारी जिस तरह से लाभ जानते हैं उस तरह से करते हैं।37 106. योगोद्वहन क्रिया में नन्दीसूत्र का योगवाही देववंदन करवाए तो मान्य है, परन्तु उपधान की क्रिया में मान्य नहीं है।38 107. सेनप्रश्न के अनुसार उपस्थापना और दशवैकालिकसूत्र के योग पूर्ण होने के बाद मांडली के सात आयंबिल करवाए जाने चाहिए।39 108. कालिकसूत्र का योगवाही मुनि रात्रि में अणाहारी वस्तुओं का सेवन नहीं कर सकता है। यदि शारीरिक अस्वस्थता हो, तो दूसरे दिन प्रवेदन विधि करने के पश्चात अणाहारी औषधि ले सकता है। 109. आचारांगसूत्र के योगकाल में सप्तसप्ततिका नामक अध्ययन के सात दिन पूर्ण होने के बाद शेष अध्ययनों के निमित्त कालग्रहण करना चाहिए। 110. यदि अकृत योगी को व्याघातिक आदि काल ग्रहण करने हो तब वह सन्ध्या को नोंतरा देने से पूर्व प्रत्याख्यान करे और नोंतरा देने के बाद स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना करे। 111. वर्तमान में उपस्थापना के पश्चात क्रमश: उत्तराध्ययन, आचारांग, कल्पसूत्र, नंदी, अनुयोगद्वार, महानिशीथ अथवा महानिशीथ के बाद नंदी एवं अन्योगद्वार फिर शिष्य की योग्यतानुसार सूत्रकृतांग आदि सूत्रों के योग करवाये जाते हैं। 112. आवश्यक, दशवैकालिक, नंदी, अनुयोगद्वार, प्रज्ञापना, औपपातिक राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रकीर्णक ग्रन्थों आदि के योग उत्कालिक योग हैं। इन सूत्रों के योग में कालग्रहण एवं संघट्टा ग्रहण नहीं किया जाता है। 113. प्रत्येक योगवाही के लिए काल प्रवेदन करना आवश्यक है। काल प्रवेदन करने वाला ही कालग्रहण सम्बन्धी अनुष्ठान कर सकता है और उसी का काल ग्रहण मान्य होता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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