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________________ 154... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण 114. जब योग में से बाहर निकलना हो तब पहले दिन आयंबिल आदि तप करना जरूरी है, नीवि करके दूसरे दिन योगोद्वहन से बाहर नहीं निकला जा सकता है। 115. वर्तमान आचार्यों के निर्देशानुसार संघट्टाग्राही (कालिक योगवाही) को आउत्तवाणय (विशेष रूप से उपयोग रखने योग्य नियम) ग्रहण करना हो तो प्रवेदन के समय ही गुर्वानुमति प्राप्त कर लेनी चाहिए, क्योंकि गुर्वाज्ञा के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है। 116. जिस योगवाही ने आउत्तवाणय (विशेष रूप से सजग रहने का नियम) ग्रहण किया है उस मुनि को मात्र संघट्टा ग्रहण करने वाले मुनि के द्वारा लाया गया भक्त-पान कल्प्य नहीं होता है, परन्तु आउत्तवाणय ग्रहण करने वाले मुनि द्वारा लाया गया आहार संघट्टाग्राही योगवाही को कल्पता है। मुनि द्वारा संघट्टा ग्रहण करने वाले मुनि को दिया गया आहार-पानी उसे पुनः लेना नहीं कल्पता है। यदि आउत्तवाणय ग्रहण करने वाला मनि संघट्टाग्राही को दिया गया भोजन आदि वापस ले लें और उसका उपभोग कर लें तो दिन गिरता है। 117. आचारांगसूत्र के सप्तसप्ततिका अध्ययन का योगोद्वहन करने वाले मुनि को उत्तराध्ययनसूत्र का योग किए हुए मुनि के द्वारा लाया गया और सप्तसप्ततिका अध्ययन का योग नहीं किए हुए आचारिक मुनि के द्वारा लाया गया आहारादि ग्रहण करना नहीं कल्पता है। 118. निशीथसूत्र के दस दिन पूर्ण होने के बाद कल्पसूत्र एवं व्यवहारसूत्र के योग में प्रवेश कर सकते हैं। 119. नोंतरा देते हए, कालग्रहण लेते हए, स्वाध्याय प्रस्थापन, पाटली स्थापन आदि करते हुए ईर्यापथ प्रतिक्रमण में छींक आदि हो जाये तो पुन: ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। 120. काल प्रवेदन करते समय किसी तरह की असावधानी हो जाये तो पूर्व रात्रि में गृहीत सभी कालग्रहण नष्ट हो जाते हैं। शुद्ध रूप से ग्रहण किया गया काल भी विनष्ट हो जाता है। उस दिन प्रवेदन विधि होती है। 121. संघट्टा- आउत्तवाणय ग्राही को आहार लेते समय झोली में पडला एवं ढक्कन दोनों रखने चाहिए।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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