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________________ 152... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण लिया जा सकता है, परन्तु प्राभातिक काल सभी कालग्रहण में होना ही चाहिए। 97. जितने कालग्रहण लिए हों, प्रात:काल सभी का एक साथ प्रवेदन करना चाहिए। 98. किसी सूत्र के योग दिन शेष हों और भगवतीसूत्र में प्रवेश कर संघट्ट आउत्तवाणय ग्रहण करें तो वे दिन भगवतीसूत्र में नहीं गिने जाते हैं। 99. भगवतीसूत्र के योग में 75 कालग्रहण पूर्ण होने तक आयंबिल-नीवि इस क्रम से तप करते हैं। उसके पश्चात पाँच तिथियों में आयंबिल और शेष दिनों में नीवि करते हैं। वर्तमान में नीवि के दिन फल वगैरह लेने की प्रवृत्ति है। 100. भगवतीसूत्र के योग में प्रवेश करने के पश्चात चार माह से लेकर पाँच महीने और पन्द्रह दिन के भीतर 'गणिपद' दिया जाता है। 101. भगवतीसूत्र के योग दिन के सम्बन्ध में मत-मतान्तर हैं। किंचिद् हस्तप्रतों में 188 तथा कुछ हस्तप्रतों में 189 दिनों का उल्लेख मिलता है। इन दिनों की गणना नवपद ओली सम्बन्धी अस्वाध्याय के लगभग 13 दिनों को सम्मिलित कर की गई है। नवपद ओली में तिथि क्षय हो तो 12 दिन होते हैं और तिथि वृद्धि हो तो 14 दिन गिनती में आते हैं। वर्तमान में इस सूत्र योग के 186 दिन माने गये हैं। इनमें उपर्युक्त दोनों अस्वाध्याय सम्बन्धी दिनों का अन्तर्भाव है, परन्तु वृद्धि दिनों की गणना नहीं की गई है। इस सूत्र योग को वहन करते हुए यदि अधिक मास हो तो दो दिन की वृद्धि करके 188 दिन, दो ओली पर्व आ जाये तो 196 दिन और दो ओली पर्व एवं अधिक मास आ जाये तो 198 दिन तक योग तप करना चाहिए। उसके पश्चात गिरे हुए दिनों की पूर्ति करना चाहिए। 102. भगवतीसूत्र के योग करते हुए जिस दिन गणिपद का शुभ मुहूर्त हो उस दिन अनुज्ञा और उससे पूर्व दिन में समुद्देश सम्बन्धी कालग्रहण करना चाहिए। 103. आचरणा से भगवतीसूत्र योगकृत मुनि को गणिपद दिया जाता है। उसके पश्चात गणि पदस्थ को ही पन्यास आदि पद देने की परम्परा है। 104. प्रचलित परम्परा के अनुसार गणिपद और पन्यासपद दिन के मध्याह्न
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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