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योगोद्वहन : एक विमर्श ...151 अनागाढ़ योग में प्रवेश करना हो तो योग निक्षेप करवाकर अनागाढ़ योग में प्रवेश करवाना चाहिए, अन्यथा सभी दिन आगाढ़ योग में गिने
जाते हैं। 89. परम्परागत सामाचारी के अनुसार शक्ल पंचमी, दो अष्टमी एवं दो
चतुर्दशी इन पाँच तिथियों के दिन सूत्र योग को पूर्ण नहीं करना चाहिए,
किन्तु योग में प्रवेश कर सकते हैं। 90. योगवाही के बंधे हुए रजोहरण द्वारा अकृतयोगी मुनि संघट्टा आदि नहीं
ले सकता है। 91. कालप्रवेदन करते समय यदि योगवाही उपस्थित न हो तो उसका
कालग्रहण नष्ट हो जाता है। 92. कालिक योग में सात कालग्रहण के बाद एक दिन बढ़ता है। उत्कालिक
योग में सात दिन के बाद एक दिन बढ़ता है। मूल दिन और वृद्धि दिन
के पश्चात अमान्य दिनों की सम्पर्ति करनी चाहिए। 93. तपागच्छ सामाचारी के अनुसार प्रवर्त्तमान सूत्र की अनुज्ञा हो जाने के बाद
कालिक सूत्रों के योग में प्रवेदन क्रिया करते समय इच्छाकारेण भगवन्! तुम्हे अम्हं...श्रुतस्कंधे संघट्टे उत्संघट्टे दिन पईसरावणी संघट्टो आउत्तवाणय लेवरावणी पाली.....करशं उत्कालिक योग में इच्छ. भगवन्! तुम्हे अम्हं ..श्रुतस्कंधे विधि-अविधि दिन पईसरावणी
पाली.....करशुं, यह बोलें। 94. उत्तराध्ययन आदि आगाढ़ सूत्रों के योगकाल में अखण्ड धान, मेथी,
मंग, चना आदि और आवाज करने वाले खाखरा, पापड़, कड़क पुड़ी आदि ग्रहण करना वर्जित है तथा जिस सूत्रयोग में आउत्तवाणय के
आदेश लिये जाते हैं उनमें भी उक्त वस्तुएँ ग्रहण करना नहीं कल्पता है। 95. उपस्थापना की नन्दी और दशवैकालिकसूत्र की अनुज्ञा नन्दी एक ही दिन
में आती हों तो एक नन्दी करनी चाहिए, एक नन्दी के समक्ष दोनों क्रियाएँ एक साथ कर सकते हैं। यदि उपस्थापना का मुहूर्त विलम्ब से हो तो 'बहुपडिपुन्ना पौरुषी' यह विधि पहले करें और स्वाध्याय एवं
प्रत्याख्यान बाद में करें। 96. एक दिन में एक कालग्रहण लेना हो तो प्राभातिक कालग्रहण ही लेना
चाहिए। एक से अधिक कालग्रहण लेने हों तो शेष तीनों को क्रम पूर्वक