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योगोद्वहन : एक विमर्श ...149 71. एक महीने के अन्तर्गत अनागाढ़ सूत्रों के योग में दो बार और अतिरिक्त
सूत्रों के योग में तीन बार प्रवेश कर सकते हैं। 72. यदि सूर्यग्रहण दिन में होकर दिन में ही समाप्त हो जाये तो एक दिन की
अस्वाध्याय होने से एक दिन गिरता है, यदि ग्रसित हुआ अस्त होता है
तो दो दिन गिरते हैं। 73. चन्द्रग्रहण रात्रि में होकर रात्रि में ही समाप्त हो जाये तो एक दिन भी नहीं
गिरता है परन्तु चन्द्रमा ग्रसित हुआ ही अस्त हो जाए तो एक दिन
गिरता है। 74. व्याघातिक काल की पहली स्वाध्याय प्रस्थापना सभी योगवाहियों को एक
साथ करनी चाहिए, शेष काल सम्बन्धी पहली स्वाध्याय प्रस्थापना
युगपद करने का नियम नहीं है। 75. संघट्ट क्रिया पूर्ण करने के पश्चात ‘अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं'
पाठ बोल दिया हो, उसके पश्चात आउत्तवाणय का अनुष्ठान करते समय असावधानीवश भूल हो जाये तो पुनः ‘आउत्तवाणय' क्रिया करनी
चाहिये, परन्तु संघट्ट क्रिया करना आवश्यक नहीं होता है। 76. प्राभातिक आदि काल ग्रहण करते समय विकलेन्द्रिय (भंवरा, मच्छर,
मकोडा आदि) जीवों के द्वारा दंडी, पाटली या दंडासन हिल जाये तो
कालग्रहण नष्ट हो जाता है, केवल स्पर्श मात्र हो तो काल नहीं जाता है। 77. आचारिक और संघट्ट योगवाही का परस्पर में व्यवधान (आड़) नहीं माना
जाता है। 78. वसति का शोधन करने के तुरन्त बाद संघट्टा लेना प्रारम्भ कर देना
चाहिए। उसके बाद अचानक किसी के नकसिर (नाक में से खून) गिरने लग जाये अथवा मच्छर आदि के उपद्रव से रक्त निकलना शुरू हो जाये तो पुन: वसति शुद्धि करके दंडी की स्थापना करें, इससे संघट्टा नष्ट नहीं
होता है। 79. जिस आचार्यादि मुनियों ने सूत्रादि का उद्देश कराया हो, उन्हीं के द्वारा
समुद्देश और अनुज्ञा की क्रिया करवायी जाये, ऐसा नियम नहीं है। अन्य अधिकृत मुनि भी समुद्देशादि क्रिया करवा सकते हैं।