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________________ 148... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण 65. सप्तसप्ततिका नामक अध्ययन के योग में शैक्ष (नूतन साधु) को दो नीवि भी करवा सकते हैं। 66. कालिक सूत्रों को योगोद्वहन करने वाले योगवाही पात्र आदि उपकरणों का ग्रहण (संघट्टा) कर लेने के पश्चात विशेष स्थिति में असंघट्टित (जिन्हें विधिपूर्वक ग्रहण नहीं किया है ऐसे) वस्त्रों को धारण कर और संघट्टित (संस्पर्शित) पात्रा - तिरपणी आदि को ग्रहण कर आहार- पानी के लिए सौ कदम के बाहर जा सकते हैं, परन्तु संघट्टित पात्रादि का असंघट्टित वस्त्रादि के साथ स्पर्श नहीं होना चाहिए। यदि स्पर्श हो जाये तो संघट्टित पात्र आदि उपकरण संघट्टा से बाहर हो जाते हैं तथा पात्रों में रही हुई खाद्य वस्तु योगवाही के लिए अकल्प्य हो जाती है। ऐसी स्थिति में आहार बच जाये और उसे परिष्ठापित करना पड़े तो दिन गिरता है। 67. असंखय, बंधक, चमर, गोशालक और सप्तसप्ततिका अध्ययन के योग में यदि दूसरा कालग्रहण शुद्ध रूप से ग्रहण नहीं हुआ हो तो पिछले दिन का अनुष्ठान निरर्थक तो नहीं होता है, परन्तु उसे दूसरे दिन आयंबिल करना चाहिए। 68. किसी भी सूत्र का योग करने के लिए अस्वाध्यायकाल में प्रवेश नहीं करना चाहिए। यदि सूत्र विशेष के योग में प्रवेश करने के पश्चात अस्वाध्याय हो जाये और योग से निकलना आवश्यक हो तो तीन दिन के उपरान्त ही बाहर हो सकते हैं। 69. यदि प्रवर्त्तमान सूत्र का योग पूर्ण करने के पश्चात उसमें से बाहर निकले बिना ही दूसरे सूत्र के योग में प्रवेश कर लिया जाए, और फिर किसी कारणवश बाहर निकलना पड़े तो नये सूत्र के तीन कालग्रहण पूर्णकर उसके पश्चात निकल सकते हैं, तीन दिन पूरे करने की जरूरत नहीं है। 70. अनागाढ़ सूत्रों के योग चल रहे हो, कदाचित बीच में से बाहर निकलना पड़े तो निकलने के छह माह पूर्व पुन: इस सूत्रयोग में प्रवेश कर अनुज्ञा प्राप्त कर लेनी चाहिए। छ: माह के अन्तर्गत अनुज्ञा प्राप्त कर लेने पर उस सूत्र के योग पूर्व में जितने दिन किये हो उतने दिन गिनती में आते हैं, अन्यथा निरस्त हो जाते हैं। तब फिर से उस सूत्र के योग करने होते हैं। स्पष्टार्थ है कि किसी भी अंगसूत्र अथवा श्रुतस्कन्ध के उद्देशक दिन से लेकर छह मास के भीतर उसकी अनुज्ञा हो जानी चाहिए ।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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