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146... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण 48. उपवास किया हुआ योगवाही सन्ध्याकाल में एक खमासमण पूर्वक ही
दिवस चरिम प्रत्याख्यान ग्रहण करें, द्वादशावर्त्तवन्दन नहीं करें। 49. आचारांग आदि सत्रों के योग के मुख्य दिन पूर्ण होने के बाद समुद्देश एवं
अनुज्ञा होती है, कारण कि इसमें गिरे हुए दिन की गणना होने से एक
दिन आगे-पीछे हो जाता है। 50. जिस दिन किसी सूत्र योग को पूर्णकर उससे बाहर निकलना हो, उससे
पूर्व वाला दिन असावधानीवश अमान्य हो जाये तो दूसरे दिन योग में से बाहर नहीं निकल सकते हैं। इसी तरह योग में से बाहर निकलने के पूर्व दिन की मध्यरात्रि व्यतीत हो जाने के पश्चात अकालवृष्टि, विद्युत गर्जन या विद्युत पात आदि हो जाये, तब भी दूसरे दिन योग पूर्णकर उससे बाहर नहीं हो सकते हैं। यदि पूर्व दिन में किसी तरह की बाधा उपस्थित
न हुई हो, तो दूसरे दिन सूत्र योग पूर्णकर बाहर हो सकते हैं। 51. चातुर्मास के दौरान वृष्टि, गर्जना, विद्युत प्रकाश आदि होने पर
अस्वाध्याय नहीं होता है। 52. विशेष कारण उपस्थित होने पर प्राभातिक काल ग्रहण करते समय तीन
बार नोंतरा (स्वाध्याय हेतु शुद्ध कालग्रहण) विधि की जाती है। 53. जिस सूत्र का योग चल रहा हो, उसकी अनुज्ञा न होने तक दंडी, पाटली
और योगक्रिया के दंडासन की दो बार प्रतिलेखना करनी चाहिए। 54. कालिक सूत्रों के योगोद्वहन काल में कम्बली, आसन और ओघारिया
(रजोहरण की दण्डी पर लपेटा जाने वाला वस्त्र) एकतार का होना
चाहिए। 55. कालिकसूत्र योगवाही को असंघट्टित आसन अथवा अप्रमार्जित भूमि पर
आहार-पानी नहीं लेना चाहिए। 56. उग्घाड़ा पौरुषी क्रिया करने का समय हो चका हो तो संघट्ट क्रिया करने
से पूर्व पौरुषी क्रिया करके पच्चीस-पच्चीस बोल सहित पात्रादि की प्रतिलेखना कर लेनी चाहिए। उसके पश्चात संघट्ट क्रिया पूर्वक पात्र
आदि ग्रहण करने चाहिए। 57. उत्तराध्ययन सूत्र के योग में आउत्तवाणय की क्रिया नहीं होती है। 58. काल ग्रहण लेते हुए, नोंतरा देते हुए, संघट्ट क्रिया करते हुए, आहार
सेवन के पश्चात चैत्यवंदन करते हुए, पौरुषी विधि करते हुए