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________________ 144... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण अन्य कृतयोगी न हों, तो योगवाही स्वयं स्वाध्याय प्रस्थापन क्रिया करें, ऐसी प्रवृत्ति है । परन्तु प्रचलित सामाचारी के अनुसार योगवाही के द्वारा स्वाध्याय प्रस्थापन क्रिया किये जाने पर सभी योगवाहियों को एक स्वाध्याय प्रस्थापना क्रिया और करनी चाहिए । यहाँ आशय यह है कि अनुष्ठान कारक के अभाव में एक कालग्रहण सम्बन्धी दो बार स्वाध्याय प्रस्थापन करना चाहिए। 35. महानिशीथ, नंदी एवं अनुयोगद्वार इन सूत्रों का योग किया हुआ मुनि अन्य योगवाहियों को योगोद्वहन करवा सकता है। क्योंकि जिस मुनि ने स्वयं ने जिन सूत्रों के योग नहीं किये हैं, वह अन्यों को उन सूत्रों के योग कैसे करवा सकता है ? 36. किन्हीं आचार्य के अभिमतानुसार जिस मुनि ने महानिशीथसूत्र के योग नहीं किये हैं किन्तु नन्दी एवं अनुयोगद्वार सूत्र के योग कर लिए हैं वह योग के व्रतोच्चार और दीक्षा नन्दी की क्रिया में नन्दी पाठ और नन्दी क्रिया करवा सकता है, परन्तु उपाधानकाल में नहीं। 37. दिन के प्रथम प्रहर में कालग्रहण, पाटली और स्वाध्याय प्रस्थापना कर लेनी चाहिए, अन्यथा कालग्रहण विनष्ट हो जाता है। यदि कारणवश बाकी रह जाए तो पहली पौरुषी की पाटली स्थापन की क्रिया और स्वाध्याय प्रस्थापन दिन की चौथी पौरुषी में पूर्ण कर सकते हैं। 38. काल प्रवेदन करते समय किसी तरह की असावधानी हो जाये अथवा प्रवेदन करने के पश्चात वसति की परिमित भूमि में अशुचि दिख जाये तो पुनः काल प्रवेदन नहीं करना चाहिए। किन्तु वसति शुद्ध करके सामान्य प्रवेदन (पवेणुं) विधि करनी होती है। वह दिन अमान्य नहीं होता है किन्तु सभी कालग्रहण दूषित हो जाते हैं। 39. कालिक या उत्कालिक योग का अनुष्ठान और पवेयणा विधि करने के पश्चात वसति में अशुचि दिख जाये अथवा स्वाध्याय प्रस्थापना एवं पाटली की क्रिया करने पश्चात अशुचि दिख जाये और तब तक जिन मंदिर एवं स्थंडिल न गये हों तो अशुचि द्रव्य का निवारण कर पुनः से उत्कालिक अनुष्ठान और प्रवेदन विधि करनी चाहिए। यदि कालिक योग
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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