SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...141 16. चातुर्मास के दौरान किसी योगवाही की मुखवस्त्रिका खो जाये तो श्रावक की मुखवस्त्रिका से योगानुष्ठान नहीं किया जा सकता है। 17. यदि आगमसूत्र के समुद्देश या अनुज्ञा दिन में अकाल में मलोत्सर्ग करना पड़े, वमन हो जाये या गृहीत आहार के परिष्ठापन की स्थिति उत्पन्न हो जाये तो योगवाही को एक दिन की वृद्धि करके आयंबिल करना चाहिए, ऐसी परवर्ती सामाचारी है। उक्त स्थितियों में उस दिन का काल ग्रहण नष्ट नहीं होता है। 18. यदि एक दिन में दो काल ग्रहण किये हों और उसमें एक काल ही शुद्ध रूप से ग्रहण हुआ हो तो दूसरे दिन एक ही काल ग्रहण लेना चाहिए। यदि एक दिन में आकसंधि सम्बन्धी दोनों काल नष्ट हो गये हों तो दूसरे दिन एक भी कालग्रहण निष्फल नहीं होता है तथा उस दिन योगवाही शिष्य को आयंबिल करना चाहिए उससे दोनों ही काल शुद्ध रहते हैं। 19. आकसंधि दिनों में अकाल संज्ञा (असमय मलोत्सर्ग) करने पर केवल संघट्टा ग्रहण करके पुन: कालानुष्ठान किया जा सकता है। उसके पश्चात पुन: संघट्टा ग्रहण करना चाहिए। यदि अकाल संज्ञा करने से पूर्व प्रवेदन • विधि कर ली गई हो, तो दूसरी बार ग्रहण किया गया अनुष्ठान शुद्ध नहीं होता है। 20. गुरु के द्वारा ईर्यापथ प्रतिक्रमण न किया गया हो तब भी उनके समक्ष संघट्ट और आउत्तवाणय का मोचन (त्याग) कर सकते हैं। 21. आगम विधि के अनुसार अनागाढ़ सूत्र के योग में प्रवेश करने के पश्चात रोग आदि कठिन परिस्थिति उत्पन्न हो जाये तब भी न्यूनतम तीन दिन और तीन काल ग्रहण पूर्ण करने के अनन्तर ही उस सूत्र योग से बाहर निकल सकते हैं। 22. यदि अनागाढ़ सूत्र के योग में प्रवेश करने के तुरन्त बाद शारीरिक अस्वाध्याय हो जाये तो उसके लिए तीन दिन एवं तीन काल ग्रहण की मर्यादा नहीं है, वह कभी भी बाहर निकल सकता है। 23. जब तक सप्तसप्ततिका नामक अध्ययन का योग प्रारम्भ न हो जाये, तब तक एक-दूसरे के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया या लिया गया काल ग्रहण ही शुद्ध होता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy