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________________ 140... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण वसति शुद्धि का प्रवेदन भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि अप्रतिलेखित रजोहरण से शुद्ध वसति भी अशुद्ध हो जाती है। 7. योगवाही को अप्रमार्जित स्थान पर आहार ग्रहण, मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन, संघट्ट ग्रहण, आउत्तवाणय ग्रहण और इनका विसर्जन नहीं करना चाहिए। 8. योगकाल में अनाचारिक (मंडलयोगी) मुनि के द्वारा गृहीत काल ग्रहण सभी योगवाहियों के लिए ग्राह्य होते हैं। 9. उपस्थापित मुनि के द्वारा किया गया वसति प्रमार्जन, दिशावलोकन, वसति शोधन, वसति प्रवेदन, दंड प्रतिलेखन आदि अनुष्ठान सभी योगवाहियों को ग्राह्य होते हैं। छोटी दीक्षा लिए हए मुनि द्वारा की गई उपरोक्त क्रियाएँ-योगवाहियों को ग्राह्य नहीं होती हैं। 10. अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र के योगोद्वहन में चार कालों का ग्रहण नहीं करना चाहिए। 11. भगवतीसूत्र के योग में चमर नामक उद्देशक प्रारम्भ हो तब तक एकान्तर आयंबिल करना चाहिए। फिर विगय ग्रहण हेतु आठ श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। आशय यह है कि गीतार्थ आचरणा के अनुसार 'चमर' उद्देशक शुरू होने तक 75 काल ग्रहण एकान्तर आयंबिल तप पूर्वक किये जाते हैं। फिर चमर की दत्ति के समय उक्त कायोत्सर्ग किया जाता है। 12. आकसंधिकाल में दिन वृद्धि हो और गृहीत काल ग्रहण विद्यमान हो तो अन्त में आयंबिल करना चाहिए। 13. प्रकीर्णक सूत्रों के योग में नन्दी नहीं होती है। किन्हीं के मतानुसार प्रथम के दो प्रकीर्णक सूत्रों में नन्दी होती है। 14. सभी आगम सूत्रों के प्रवेश दिन में योगवाहियों को आयंबिल करना चाहिए, किन्तु कुछ आचार्यों के मतानुसार प्रकीर्णक सूत्रों के योग प्रवेश के दिन नन्दी होने पर भी नीवि तप ही करना चाहिए। 15. नन्दी के दिन, 'असंखय' नामक अध्ययन के दिन, ‘बंधक' नामक शतक के दिन और 'चमर' नामक अध्ययन के दिन सन्ध्याकाल में व्याघातिक कालग्रहण का अनुष्ठान नहीं करना चाहिए, वह शुद्ध नहीं होता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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