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132... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण • चातुर्मास काल के दौरान व्रत या योग (श्रेष्ठ सूत्रों का अध्ययन) प्रारम्भ करते समय वर्ष, मास आदि की शुद्धि नहीं देखनी चाहिए, केवल दिन शद्धि का विचार करना आवश्यक है। • तप, नंदी, आलोचना आदि शुभ कार्य मृद, ध्रुव, चर एवं क्षिप्र नक्षत्रों तथा मंगलवार और शनिवार को छोड़कर अन्य वारों में ही करने चाहिए। • मृगशिरा आदि दस विद्या नक्षत्रों में, अमृतसिद्धि योग एवं रवि योग में और शुभ शकुनों के होने पर ही योगोद्वहन प्रारम्भ करना चाहिए। • आचार्य जिनप्रभसूरि के अनुसार निशीथसूत्र सम्बन्धी योग में असमर्थ, बाल, रूग्ण आदि साधु नीवि के दिन एकासना करके भी निर्वाह कर सकते हैं। यह आपवादिक नियम दशवैकालिकसूत्र के योगकाल में भी समझ लेना चाहिए।
__योगवाहियों के लिए कायोत्सर्ग सम्बन्धी सूचनाएँ ग्यारह कायोत्सर्ग सम्बन्धी नियम
जिस दिन अंगसूत्र में प्रवेश करना हो उस दिन ग्यारह कायोत्सर्ग किये जाते हैं1. अंगसूत्र के उद्देशक का पहला कायोत्सर्ग। 2. श्रुतस्कन्ध के उद्देशक का दूसरा कायोत्सर्ग। 3. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग (अध्ययन) के उद्देशक का तीसरा कायोत्सर्ग। 4. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग के आदिम उद्देशकों के उद्देश का चौथा कायोत्सर्ग। 5. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग के अन्तिम उद्देशकों के उद्देश का पांचवाँ
कायोत्सर्ग। 6. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग के आदिम उद्देशकों के समुद्देश का छठवा
कायोत्सर्ग। 7. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग के अन्तिम उद्देशकों के समुद्देश का सातवाँ
कायोत्सर्ग। 8. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग के आदिम उद्देशकों की अनुज्ञा का आठवाँ
कायोत्सर्ग। 9. श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी वर्ग के अन्तिम उद्देशकों की अनुज्ञा का नौवाँ
कायोत्सर्ग। 10. वर्ग के समुद्देश का दशवाँ कायोत्सर्ग। 11. वर्ग की अनुज्ञा का ग्यारहवाँ कायोत्सर्ग।