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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ... 131 2. रविगत- जिस नक्षत्र में सूर्य स्थित रहता है, वह रविगत नक्षत्र कहलाता है। 3. विड्वर - टूटा हुआ अर्थात पूर्व द्वार वाले नक्षत्रों में पूर्व दिशा के मार्ग से गमन करने के बदले पश्चिम दिशा से जाने पर वह गिरने वाला विड्वर नक्षत्र कहलाता है। 4. संग्रह - जिस ग्रह में सूर्य हो, उस ग्रह में रहने वाला नक्षत्र संग्रह नक्षत्र कहलाता है। 5. विलम्बी - जिस नक्षत्र पर सूर्य हो, उसके पीछे का तीसरा नक्षत्र विलम्बी कहलाता है। 6. राहुहत - जिस नक्षत्र में ग्रहण हो, वह राहुहत कहलाता है। 7. ग्रह भिन्न- जिस नक्षत्र के बीच से ग्रह जाता है, वह ग्रह भिन्न कहलाता है। इन नक्षत्रों में योगवहन प्रारम्भ नहीं करना चाहिए | 30 तिथि - तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी तथा नन्दा और भद्रा तिथियाँ- अध्ययन प्रारम्भ के लिए उपयुक्त बताई गई हैं। 31 वार - मंगल और शनि को छोड़कर शेष वार शुभ हैं। उपर्युक्त नक्षत्रादि एवं प्रशस्त दिन, शुभ स्वप्न, शुभ शकुन आदि के निमित्त मिलने पर योगोद्वहन प्रारम्भ करना चाहिए । दोष - विधिमार्गप्रपा के अनुसार योगोद्वहन प्रारम्भ करने के दिन पात आदि दोष नहीं होने चाहिए। दीक्षा, प्रतिष्ठा जैसे श्रेष्ठ अवसरों पर पात आदि दोषों का मुख्य रूप से वर्जन किया जाता है। सूर्य जिस नक्षत्र में चल रहा हो, उस नक्षत्र से आश्लेषा, मघा, चित्रा, अनुराधा, श्रवण और रेवती नक्षत्र तक गिनने पर जो संख्या आती हो, उस संख्या को अश्विनी नक्षत्र से पुनः गिनने पर जो नक्षत्र आता हो, उस दिन वह नक्षत्र पात दोष से युक्त होता है इसी तरह लता दोष, एकार्गल दोष आदि भी समझने चाहिए। योगोद्वहन ( आगम अध्ययन) सम्बन्धी सूचनाएँ · पंचकल्पसूत्र के अनुसार अंग शास्त्रों के श्रुतस्कन्धों का उद्देश (पाठ ग्रहण) शुक्लपक्ष में ही होता है। • आचार सम्बन्धी शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी- ये तिथियाँ श्रेष्ठ मानी गई हैं।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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