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________________ 128... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दांडीधर, कृतयोगी आदि कई मुनि सहयोगी बनते हैं। वे विशिष्ट योग्यताओं से युक्त होने चाहिए। व्यवहारभाष्य के मतानुसार कालग्राही मुनि - प्रियधर्मा, दृढ़धर्मा, संविग्न, पापभीरु, खेदज्ञ, काल विधि का सम्यक ज्ञाता और अभीरु होना चाहिए | 18 दण्डधारी मुनि सामुदायिक सामाचारियों का ज्ञाता, विघ्नों एवं अविधि को रोकने वाला, भिक्षा प्रमुख, सर्वस्मृतिधर और धर्म देशना में कुशल होना चाहिए। भिक्षाचर्या आदि में सहयोगी साधु निद्रा एवं आलस्य को जीतने वाला, उत्साहित करने वाला, स्नेहवान, गुणानुरागी, उद्यमवान, दयावान, विषयकषाय रूप शत्रुओं को जीतने वाला, अनेक आगमों का ज्ञाता, सत्त्वशाली, अनेक कलाओं में निपुण, निर्मल एवं प्रसन्न चित्तवाला होना चाहिए। इन गुणों से युक्त मुनिजन योगवाही के लिए विशिष्ट सहयोगी होते हैं। 19 योगोद्वहन के लिए क्षेत्र कैसा हो? योगोद्वहन उत्तम क्षेत्र में किया जाना चाहिए, जिससे इस कठिनतर चर्या का निर्दोष परिपालन किया जा सके। आचार्य वर्धमानसूरि ने योगवहन के अनुकूल क्षेत्र का स्वरूप बतलाते हुए कहा है कि जहाँ बहुत पानी हो, भिक्षा सरलता से मिलती हो, सर्व प्रकार के भयों से सर्वथा मुक्त हो, अनेक साधुसाध्वी, श्रावकों एवं शास्त्र वेत्ताओं से संपन्न हो, निर्दोष जल और अन्नं से युक्त हो । नगर अस्थि, चर्म आदि से रहित हो, सर्प, केंकड़ा, छिपकली, मच्छर एवं वृषभ से रहित हो, मार्ग साफ- -सुथरे हों, रोग-मारी आदि उपद्रव से मुक्त हों और नगर के लोग अल्पकषायी हों ऐसा क्षेत्र योगवहन के लिए शुभ होता है | 20 योगोद्वहन कैसी वसति में किया जाए? वसति शोधन सामान्य मुनियों का दैनिक आचार है अतः योगवाहियों के लिए तो इसे परम आवश्यक माना गया है। क्योंकि योगोद्वहन के दिनों में प्रतिदिन वसति शोधन (शुद्धि) करने के पश्चात ही कालप्रवेदन आदि क्रियाएँ की जाती है। वसति शुद्ध होने पर ही कालग्रहण आदि लिए जाते हैं तथा आगम सूत्रों के उद्देशकादि की वाचना ग्रहण कर सकते है, अन्यथा दिन आदि अमान्य होने से उस दिन के सभी आवश्यक अनुष्ठान निष्फल हो जाते हैं। इसलिए वसति का शुद्ध होना अनिवार्य है। सामान्यतया जो स्थान चर्म, हड्डी, दाँत, नख, केश, मल-मूत्र आदि की अपवित्रता से रहित हो, जिसके नीचे और ऊपर
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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