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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ... 127 सुविनीत हो, लज्जालु प्रकृतिवान हो, महासत्ववाला हो, सरल परिणामी हो, संसार से विरक्तता हो, दृढ़धर्मी हो, चारित्र में सम्यक रूप से सुस्थित हो, क्रोध, मान, माया और लोभ का विजेता हो, परीषहजित हो, आरोग्यवान हो, मनवचन - काया से संयत हो, अल्प उपधि धारक एवं अल्प परिग्रही हो, निद्राजयी हो, आहार पर नियंत्रण हो, आलोचना के जल से पाप रूपी मल के समूह को प्रक्षालित करने वाला हो, कल्पत्रेप क्रिया किया हुआ हो, संग्रह का त्यागी हो, गुरु आज्ञा में रत हो - इन 22 लक्षणों से सुसम्पन्न मुनि आगाढ़ और अनागाढ़ सूत्रों के योग कर सकता है 1 15 काया आचारदिनकर में आगम अध्येता मुनि के निम्न लक्षण बतलाए गए हैंवह मौनी हो, परीषह को सहन करने में समर्थ हो, क्रोध, मान, माया और लोभ से रहित हो, बलिष्ठ हो, मित्र और शत्रु में समभाव रखने वाला हो, मन-वचनसे गुरु एवं मुनिजनों की प्रसन्नतापूर्वक भक्ति करने वाला हो, कुशल हो, दयालु हो, श्रुतशास्त्र के कल्याणकारी वचन जिसने सुने हो, जिसके मन में पाप कार्यों के प्रति लज्जा का भाव हो, वैराग्यवासित तथा बुद्धिमान हो, जिसने तृषा और निद्रा पर विजय प्राप्त कर ली हो, जो अखण्ड रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला हो, जिसने प्रायश्चित्त के द्वारा पाप कर्मों का क्षय कर दिया हो (प्रायश्चित्त किया हुआ हो), जो बाह्य और आभ्यन्तर रूप से रस लोलुपी न हो, जिसने कषाय आदि अन्तरंग शत्रुओं को जीत लिया हो, जो दुष्कृत्यों का त्यागी हो ऐसे कुल 17 गुणों से युक्त मुनि योगवहन करने का अधिकारी होता है। 16 योगोद्वहन प्रवर्त्तक गुरु के लक्षण आचार दिनकर के अनुसार योगोद्वहन करवाने वाले गुरु दयालु, शान्त, अशठ, मधुरभाषी, आचार्य के छत्तीस गुणों से युक्त, आर्जव - मार्दव आदि दस यति धर्म के पालक, योगोद्वहन में निपुण, सम्यक अवसर के ज्ञाता, परमार्थ को जानने वाले, कुशल, निद्राजित, मोह विजेता, अप्रमत्त, मद एवं माया रहित और प्रसन्न चित्त वाले - इन गुणों से युक्त होने चाहिए। ऐसा गुरु ही शिष्य को योगोद्वहन करवाने के योग्य होता है। 17 योगोद्वहन में सहायक मुनि के लक्षण आगम सूत्रों का अभ्यास करते समय तत्सम्बन्धी कालग्रहण आदि आवश्यक क्रियाओं को निर्विघ्न रूप से सम्पन्न करने के लिए कालग्राही,
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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