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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...123 चौदहवाँ अध्ययन, प्रश्नव्याकरण, आवश्यक', दशवैकालिक, भगवती, महानिशीथ आदि सूत्रों को विधिपूर्वक ग्रहण करना आगाढ़ योग है। अनागाढ़ योग- जिन सूत्रों का योग सरलतापूर्वक वहन किया जाता है, वह अनागाढ़ योग कहलाता है। आचार्य वर्धमानसूरि के मतानुसार जिस योग में कालग्रहण, खमासमण, कायोत्सर्ग आदि क्रियाएँ और दिन पूर्ण न होने पर भी उसे बीच में अपूर्ण छोड़ा जा सकता है अथवा सूत्र की वाचना अपूर्ण रहने पर भी अन्य योग में प्रवेश कर सकते हैं, वह अनागाढ़ योग है। कुछ आचार्यों के अनुसार शारीरिक क्षीणता आदि विशेष कारण होने पर अनागाढ़ सूत्रों के योग में से प्रवेश करने के चार दिन बाद भी निकला जा सकता है अर्थात उन्हें बीच में अपूर्ण छोड़ा जा सकता है। ___भावार्थ यह है कि आगाढ़ योग औत्सर्गिक है और अनागाढ़ योग आपवादिक है। आगाढ़ योग आचरण प्रधान है और अनागाढ़ योग परिस्थिति प्रधान है। आगाढ़ योग करते समय किसी तरह की कठिन परिस्थिति उत्पन्न हो जाये तो भी जिस आगाढ़सूत्र का योग चल रहा हो उसके दिन पूर्ण करने के बाद ही उससे बाहर हो सकते हैं जबकि अनागाढ़ योग में विशेष कारण उत्पन्न होने पर तीन या चार दिन के पश्चात कभी भी बाहर हो सकते हैं यानी उस सूत्र योग को अपूर्ण छोड़ सकते हैं। नन्दीसूत्र में शास्त्रों के अध्ययन काल की अपेक्षा आगम सूत्रों के दो भेद किए गए हैं- 1. कालिकसूत्र और 2. उत्कालिकसूत्र कालिकसूत्र- जिन सूत्रों के योग में कालग्रहण आवश्यक होता है, शुद्ध काल की अपेक्षा रहती है तथा जो निर्धारित समय (दिन के प्रथम एवं अन्तिम प्रहर) में ही पढ़े जाते हैं वे कालिक सूत्र कहलाते हैं। कालिक सूत्रों के अध्ययन हेतु जो प्रहर निश्चित किए गए हैं उनमें भी अस्वाध्याय का समय अवश्य छोड़ना चाहिए। आचार प्रदीप एवं प्रचलित सामाचारी के अनुसार सूर्योदय के 24 मिनट पूर्व से 24 मिनट पश्चात तक तथा सूर्यास्त के 24 मिनट पूर्व से 24 मिनट पश्चात तक अस्वाध्याय काल माना गया है। अन्य मत के अनुसार सूर्योदय के 48 मिनट पूर्व से सूर्योदय तक, इसी तरह सूर्यास्त के बाद 48 मिनट तक अस्वाध्याय काल रहता है। प्रचलित सामाचारी में दिन एवं रात्रि के मध्याह्न काल (लगभग 11 : 30 से 12 : 30 बजे तक) का समय अस्वाध्याय काल के रूप में माना जाता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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