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________________ स्वाध्याय- भाव चिकित्सा की प्रयोग विधि... 113 निषिद्ध है। अतः अकाल के समय कालिक श्रुत का स्वाध्याय नहीं करना चाहिए, किन्तु निशीथभाष्य में संध्याकाल और अस्वाध्यायकाल में नया अध्ययन कंठस्थ आदि करने की अपेक्षा कुछ आपवादिक नियम बतलाए गए हैं जिसमें दृष्टिवाद के लिए सात पृच्छाओं का और अन्य कालिकश्रुत आचारांग आदि के लिए तीन पृच्छाओं का विधान किया है। 47 निशीथ भाष्यकार के अनुसार अपुनरुक्त रूप से जितना पूछा जाता है, वह एक पृच्छा है। इसके चार विकल्प बनते हैं- 1. एक निषद्या, एक पृच्छा 2. एक निषद्या, अनेक पृच्छा 3. अनेक निषद्या, एक पृच्छा 4. अनेक निषद्या, अनेक पृच्छा अथवा तीन श्लोकों की एक पृच्छा होती है। इस प्रकार कालिकश्रुत की तीन पृच्छाओं में नौ तथा दृष्टिवाद की सात पृच्छाओं में इक्कीस श्लोक होते हैं अथवा जहाँ छोटा या बड़ा एक प्रकरण सम्पन्न होता है, वह एक पृच्छा है अथवा आचार्य की वाचना के जितने अंश का उच्चारण या ग्रहण किया जा सकता है, वह एक पृच्छा है। स्पष्टार्थ यह है कि दृष्टिवाद के इक्कीस श्लोक परिमाण और अन्य कालिक श्रुत के नौ श्लोक परिमाण पाठ का उच्चारण आदि उत्काल (अहोरात्रि के द्वितीय-तृतीय प्रहर) में किया जा सकता है। 'पृच्छा' शब्द का सामान्य अर्थ प्रश्नोत्तर करना होता है, किन्तु प्रश्नोत्तर के लिए स्वाध्याय या अस्वाध्याय काल का कोई प्रश्न ही नहीं होता है अतः इस प्रकरण में यह अर्थ प्रासंगिक नहीं है । 48 दृष्टिवाद की सात पृच्छा क्यों ? नैगम आदि सात नय हैं। प्रत्येक नय के सौ-सौ प्रकार हैं। दृष्टिवाद में नयवाद की सूक्ष्मता है। वहाँ भेद-प्रभेद सहित नयों की तथा नयाधारित द्रव्यों के स्वरूप की प्ररूपणा है । परिकर्म सूत्रों में गणित की सूक्ष्मता है। वहाँ अष्टांग निमित्त का भी प्रतिपादन है। अतएव ग्रन्थ की विशालता के कारण दृष्टिवाद की सात पृच्छाएँ कही है जिससे पूर्व निर्दिष्ट पाठ परिणाम से अधिक पाठ का भी उच्चारण एक साथ किया जा सके। दिगम्बर मतानुसार स्वाध्याय योग काल का विभाजन इस प्रकार हैप्रात:काल का स्वाध्याय सूर्योदय से दो घड़ी पश्चात प्रारम्भ करके मध्याह्न में दो घड़ी शेष रहने पर समाप्त कर देना चाहिए। अपराह्न का स्वाध्याय मध्याह्न के दो घड़ी पश्चात से प्रारम्भ कर सूर्यास्त से दो घड़ी पूर्व समाप्त कर देना चाहिए। पूर्वरात्रिक व वैरात्रिक काल में भी स्वाध्याय का यही क्रम रखा जाना चाहिए | 49
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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