SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 112... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ___अत: मोक्षार्थियों को अनिवार्य रूप से स्वाध्याय का अनुपालन करना चाहिए।45 कालिकश्रुत सम्बन्धी स्वाध्याय के विकल्प सामान्यतया जैन धर्म में 72 आगम मान्य हैं। उनमें नंदीसूत्र के अनुसार 42 कालिकश्रुत और 29 उत्कालिकश्रुत हैं। अनुयोगद्वारसूत्र में आवश्यकसूत्र को उत्कालिक कहा गया है। इस प्रकार कुल 42 कालिक + 30 उत्कालिक = 72 आगम होते हैं। आगम परम्परा के अनुसार कालिक श्रुत का अध्ययन दिन और रात्रि के द्वितीय एवं चतुर्थ प्रहर में करना चाहिए। शेष काल (प्रथम व तृतीय प्रहर) उसके लिए निषिद्ध कहे गये हैं जबकि उत्कालिकश्रुत अस्वाध्याय काल को छोड़कर दिन और रात्रि के किसी भी प्रहर में पढ़े जा सकते हैं इनके लिए निश्चित काल का निर्धारण नहीं है। व्यवहारसूत्र में कालिकश्रुत सम्बन्धी स्वाध्याय का वैकल्पिक नियम बताते हुए कहा गया है कि साधु और साध्वी को व्यतिकृष्ट काल में (उत्कालिक श्रुत के स्वाध्याय काल में कालिकश्रुत का) स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है, किन्तु साधु की निश्रा में साध्वियाँ व्यतिकृष्ट काल में (उत्कालिक श्रुत के स्वाध्याय काल में कालिक श्रुत का) भी स्वाध्याय कर सकती हैं।46 इस वर्णन का स्पष्टीकरण निम्न हैं- जिन आगमों का स्वाध्याय जिस काल में निषिद्ध है, वह काल उन आगमों के लिए व्यतिकृष्ट काल कहा जाता है। साधु-साध्वी को दिन और रात के द्वितीय तथा तृतीय प्रहर में कालिक श्रुत का स्वाध्याय अर्थात कालिक संज्ञा प्राप्त आगम के मूल पाठ का उच्चारण नहीं करना चाहिए, परन्तु साधु का सान्निध्य हो, तो उन प्रहरों में साध्वी के लिए स्वाध्याय करने का आपवादिक कारण इसलिए है कि कभी-कभी प्रवर्तिनी या साध्वियों के मूल पाठ उपाध्याय आदि को सुनना आवश्यक हो जाता है, जिससे कि अन्य साधु-साध्वियों में मूल पाठ की परम्परा बनी रहे। दूसरा, साधुसाध्वियों के परस्पर आगम पाठों के स्वाध्याय का एवं वाचना का दूसरा-तीसरा प्रहर ही योग्य होता है, इसलिए यह छूट दी गई है। अकाल में कालिकश्रुत सम्बन्धी स्वाध्याय के विकल्प ___ आगम मर्यादा के अनुसार कालिक श्रुत का स्वाध्याय दिन और रात्रि के प्रथम और अन्तिम प्रहर में किया जाता है, दूसरा और तीसरा प्रहर उसके लिए
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy