SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 110... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण जिस प्रकार अग्नि द्वारा तपाए हुए सोने का मैल निकल जाने से वह शुद्ध हो जाता है उसी प्रकार स्वाध्याय और सद्ध्यान में लीन, छह काय रक्षक, निष्पाप मन वाले और तप में रत मुनि के पूर्व संचित कर्ममल नष्ट हो जाने से उनकी आत्मा विशुद्ध हो जाती है। जो पूर्वोक्त गुणों से युक्त है, दुःखों को सहन करने वाला है, जितेन्द्रिय है, श्रुतवान है, ममत्व रहित और अकिंचन है वह कर्म समूह के दूर होने पर उसी प्रकार शोभित होता है जिस प्रकार सम्पूर्ण मेघ पटल से रहित चन्द्रमा। आशय है कि स्वाध्याय करने वाला अष्ट कर्मों से रहित होकर निर्वाण पद रूपी फल को प्राप्त करता है।41 धवलाटीका के अनुसार स्वाध्याय का फल गुणश्रेणी आरोहण, निर्जरा एवं संवर है। इसमें इस तथ्य की पुष्टि करते हुए कहा गया है कि वृषभसेन आदि गणधरों द्वारा जिनकी शब्द रचना की गयी हैं ऐसे द्रव्य सूत्रों को पढ़ने और मनन करने रूप क्रिया में प्रवृत्त हए सभी जीवों के प्रतिसमय असंख्यात गणित श्रेणी से पूर्व संचित कर्मों की निर्जरा होती है, ऐसा प्रत्यक्ष ज्ञान अवधिज्ञानी और मन:पर्यव ज्ञानियों को होता है।42 धवलाटीकाकार उक्त विषय का समर्थन करते हुए यह भी कहते हैं कि जिन्होंने सिद्धान्त का उत्तम प्रकार से अभ्यास किया है ऐसे पुरुषों का ज्ञान सूर्य की किरणों के समान निर्मल होता है और जिसने स्वाध्याय बल से चित्त को स्वाधीन कर लिया ऐसी आत्माओं का चारित्र चन्द्रमा की निर्मल किरणों के समान होता है। प्रवचन (श्रुतज्ञान) के अभ्यास से मेरू के समान निष्कम्प, आठ मद एवं तीन मूढ़ता रहित सम्यग्दर्शन होता है। देव, मनुष्य और विद्याधरों के सुख प्राप्त होते हैं और आठ कर्मों के उन्मलित होने पर प्रवचन के अभ्यास से सिद्ध सुख भी प्राप्त होता है। श्रुतागम जीवों के मोह रूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान, अज्ञान रूप अन्धकार के विनाश के लिए सूर्य के समान और द्रव्य एवं भाव कर्म के मार्जन के लिए तपश्चरण के समान है अत: अज्ञान रूपी अंधकार का विनाश करने वाले, भव्य जीवों के हृदय को विकसित करने वाले एवं मोक्ष पथ को प्रकाशित करने वाले श्रुतवाणी की आराधना करनी चाहिए।43_ तिलोयपण्णत्ति में स्वाध्याय के लौकिक एवं अलौकिक फल की चर्चा करते हुए कहा गया है कि अज्ञान का विनाश, ज्ञान की उत्पत्ति, देव और मनुष्यादिकों के द्वारा निरन्तर की जाने वाली विविध प्रकार की अभ्यर्थना और प्रत्येक समय में होने वाली असंख्यात गुना कर्मों की निर्जरा- यह स्वाध्याय का
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy