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________________ 104... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण प्रत्याख्यान सम्यक रूप से करवाना है आदि। वह अगीतार्थ मुनि मध्यस्थ स्वभावी, अकंदी (हंसी-मजाक न करने वाला) जिससे साधु डरते हों, जो स्वयं अप्रमत्त हो, सामाचारी की अनुपालना कराने में कुशल हो।17 भाष्यकार ने यह नियम भी निर्दिष्ट किया है कि मुनि को जिस स्थान का उपयोग अभिशय्या (रात्रिक स्वाध्याय) के रूप में करना हो उस स्थान के मालिक (शय्यातर) से वृषभ मुनि आज्ञा लें कि 'हम स्वाध्याय हेतु यहाँ रहेंगे।' फिर सूर्यास्त के पूर्व ही अभिशय्या स्थान में संस्तारक, उच्चार और काल-भूमियों की प्रतिलेखना कर वसति में आएं। यदि अभिशय्या भूमि पर पहुँचने का मार्ग बाधा रहित हो तो गुरु के साथ प्रतिक्रमण करके तथा व्याघात हो तो प्रतिक्रमण बिना किए ही गुरु को वन्दना करें। उनमें ज्येष्ठ मुनि आलोचना लें, फिर अभिशय्या भूमि पर जाकर प्रतिक्रमण करें। प्रात:काल में व्याघात (स्तेन, श्वापद, आरक्षक आदि का भय) न हो, तो प्रतिक्रमण किए बिना ही अभिशय्या से वसति में आकर गुरु के साथ प्रतिक्रमण करें। व्याघात हो तो देश या सर्व आवश्यक करके वसति में आएं।18 वर्तमान में चारों काल ग्रहण, स्वाध्याय प्रवेदन, उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा आदि क्रियाएँ उपाश्रय में ही सम्पन्न की जाती हैं। इसका मुख्य कारण कालज्ञानी पूर्वधरों का अभाव होना माना जा सकता है। यद्यपि इस हेतु को दर्शाता शास्त्र संदर्भ प्राय: अनुपलब्ध है। स्वाध्याय के नियम किसी भी प्रक्रिया को निश्चित विधि से सम्पन्न करने पर ही सफलता मिलती है और आनन्द की प्राप्ति भी होती है। तदर्थ स्वाध्याय हेतु कुछ नियमों का प्रावधान किया गया है, वे निम्न हैं 1. एकाग्रता- स्वाध्याय के लिए प्राथमिक नियम यह है कि स्वाध्याय करते समय मन एकाग्र रहे, जिससे जिन सूत्रों का स्वाध्याय किया जा रहा है, वे आत्मसात हो सकें, उनके रहस्यों को जाना जा सके। चंचल मन द्वारा स्वाध्याय सार्थक नहीं होता है और स्वाध्याय का आनन्द भी नहीं मिल पाता है। 2. निरन्तरता- स्वाध्याय प्रतिदिन नियमानुसार हो। इसमें किसी प्रकार का विक्षेप नहीं होना चाहिए। यदि विक्षेप होता है तो पूर्व पठित स्मृति में नहीं रह
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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