SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वाध्याय-भाव चिकित्सा की प्रयोग विधि ...101 करना, स्वयं का जीवन उन्नत हो रहा है या नहीं, इस तरह का चिंतन करना स्वाध्याय है।11 स्वाध्याय शब्द में निहित 'अध्याय' शब्द अध्ययन एवं मनन का वाचक है। यदि इस दृष्टि से स्वाध्याय का अर्थ किया जाए तो एक अर्थ होगा स्वयं का अध्ययन। यहाँ स्वयं के अध्ययन से तात्पर्य- व्यक्ति की अपनी अनुभूतियों, वृत्तियों, वासनाओं और मनोदशाओं का ज्ञाता होना अथवा इन्हें जानने का प्रयत्न करना है। उक्त परिभाषाओं के आधार पर स्वाध्याय शब्द की निष्पत्ति तीन प्रकार से होती है 1. श्रुतधर्म (द्वादशांग) का आचरण करना। 2. आत्म हितकारी शास्त्र पाठों का अध्ययन करना। 3. अपने भीतर झांककर स्वयं की वृत्तियों एवं वासनाओं को देखना और उनका निराकरण करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय के प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार स्वाध्याय पाँच प्रकार से किया जाता हैवाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा।12 वाचना- अध्यापन करना अथवा सूत्र, अर्थ और सूत्रार्थ दोनों को विधि पूर्वक प्रदान करना वाचना कहलाता है। पृच्छना- ज्ञात विषय की विशेष जानकारी के लिए प्रश्न करना अथवा संशय को दूर करने के लिए और निश्चित अर्थ को पुष्ट करने के लिए प्रश्न करना पृच्छा है। परिवर्तना- पढ़े हुए ग्रन्थों का बार-बार पठन करना अथवा परिचित विषय को स्थिर रखने के लिए उसे बार-बार दोहराना परिवर्तना है। __ अनुप्रेक्षा- परिचित या पठित शास्त्र पाठ का मर्म समझने के लिए मननचिन्तन-पर्यालोचन करना अथवा ज्ञात अर्थ का मन में अभ्यास करना अनुप्रेक्षा है। धर्मकथा- पठित, पर्यालोचित और स्मृत शास्त्रों का उपदेश देना अथवा त्रिषष्टि शलाका पुरुषों का चरित्र पढ़ना धर्मकथा है। तत्त्वार्थसूत्र में परिवर्तना के स्थान पर 'आम्नाय' शब्द का उल्लेख है जो समान अर्थ का ही द्योतक है।13
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy