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100... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
• आत्मिक अध्यवसायों को प्रशस्त करने वाले श्रेष्ठ ग्रन्थों का अध्ययन करना अथवा स्वाध्याय के लिए जो काल शोभित है, ऐसे पौरुषी काल की अपेक्षा अध्ययन करना, स्वाध्याय है।
. आवश्यक चूर्णिकार ने स्वाध्याय का अर्थ घटन करते हुए लिखा है कि स्वाध्याय श्रुत धर्म रूप है। सामायिक (आचारांग) से द्वादशांग पर्यंत आगमों का परिशीलन करना स्वाध्याय है।2।
• उत्तराध्ययन टीका में स्वाध्याय का अर्थ बतलाते हए कहा गया है कि प्रवचन का अर्थ 'श्रुत' है श्रुतधर्म का आचरण करना स्वाध्याय है।
दिगम्बर साहित्य में स्वाध्याय शब्द की निम्न व्याख्याएँ प्राप्त होती हैं
• सर्वार्थसिद्धि के मतानुसार आलस्य त्यागकर ज्ञान की आराधना करना स्वाध्याय है।
• मूलाचार के निर्देशानुसार आप्त प्रणीत चौदह पूर्वो के ज्ञान से युक्त बारह अंग का श्रद्धान करना स्वाध्याय है।
• अनगार धर्मामृत एवं धवला टीका में उक्त कथन की पुष्टि करते हुए कहा गया है कि अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य आगम की वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, परावर्त्तना और धर्मकथा करना स्वाध्याय है।
• चारित्रसार के अनुसार अपनी आत्मा का हित करने वाला अध्ययन करना स्वाध्याय है।' प्रस्तुत ग्रन्थ में तत्त्वज्ञान को पढ़ना-पढ़ाना, स्मरण करना आदि को भी स्वाध्याय कहा है।
• कार्तिकेयानुप्रेक्षा के मतानुसार पूजा-प्रतिष्ठा आदि से निरपेक्ष होकर, केवल कर्म मल शुद्धि के लिए जिन प्रणीत शास्त्रों को भक्ति पूर्वक पढ़ना स्वाध्याय है।
• तत्त्वार्थराजवार्तिक में स्वाध्याय का विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि प्रज्ञातिशय, प्रशस्त अध्यवसाय, प्रवचन स्थिति, संशयोच्छेद, परवादियों की शंका का अभाव, परम संवेग की प्राप्ति, तपोवृद्धि और अतिचार शुद्धि आदि के लिए (श्रुताध्ययन करना) स्वाध्याय है।10
• वैदिक विद्वान के अनुसार बिना किसी अन्य की सहायता के स्वयं ही अध्ययन करना, अध्ययन किए हुए का मनन और निदिध्यासन करना स्वाध्याय है। दूसरे अर्थ के अनुसार 'स्वस्थात्मनो अध्ययन'- अपने आपका अध्ययन