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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...95 राष्ट्र और प्रजा के व्यथाकाल में, यात्राकाल में, वधस्थान में, युद्ध के समय, महोत्सव और उत्पाद (भूकम्प आदि) के दिन, जिन दिनों में ब्राह्मण अनध्याय रखते हों उन दिनों में एवं अपवित्र अवस्था में अध्ययन नहीं करना चाहिए।56 वैदिक मान्य अस्वाध्याय के पूर्वोक्त कारण जैन मत से काफी समानता रखते हैं। बौद्ध साहित्य में इस विषयक वर्णन तो प्राप्त नहीं हो पाया है किन्तु डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार वहाँ यह चर्चा अवश्य होनी चाहिए। उपसंहार
__ आगम ग्रन्थों का अध्ययन जैन साधु-साध्वियों के लिए परम आवश्यक है। वीतराग अरिहंत परमात्मा के द्वारा दिए गए उपदेश जिन ग्रन्थों में संकलित हैं वे आगम कहलाते हैं। आगम, अर्धमागधी भाषा में हैं। जैनों की परम्परागत मान्यता है कि देवी-देवताओं की भाषा भी अर्धमागधी होने से आगम देवाधिष्ठित और मन्त्ररूप माने जाते हैं। अत: आगम पाठों का अभ्यास निर्दोष काल में होना चाहिए। काल परिवर्तनशील है। ग्रह आदि एवं बाह्य घटक तत्त्वों के आधार पर उसमें शुभत्व-अशुभत्व का आरोपण किया जाता है। ज्योतिष शास्त्रादि के अनुसार तदनुरूप परिणाम भी देखे जाते हैं इसलिए आगम पाठों का अभ्यास सुयोग्यकाल में करना चाहिए। सुयोग्य काल में की गई साधना तुरन्त सफल होती है।
सन्दर्भ-सूची 1. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/20-21, 4/2/256-258 2. दसविधे अंत लिक्खिए असज्झाए पण्णत्ते, तं जहा-उक्कावाते, दिसिदाघे, गज्जिते, विज्जुते, निग्घाते, जुवते, जक्खालित्ते, धूमिता, महिता, रयउग्घाते।
स्थानांगसूत्र, 10/20 3. निशीथसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 19/14 की टीका, पृ. 416 . 4. दसविहे ओरालिते असज्झातिते, तं जहा-अट्ठी, मंसं, सोणिते, असुतिसामंते,
सुसाणसामंते, चंदोवराते, सुरोवराते, पड़ने, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो
ओरालिए सरीरगे। स्थानांगसूत्र, 10/21 5. आवश्यकनियुक्ति, भाग 2, पृ. 166/167 6. जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेइ, करेंत वा साइज्जइ तं जहा-इंदमहे,
खंदमहे, जक्ख महे, भूयमहे। निशीथसूत्र, 19/11