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________________ अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ... 93 यदि हम अनध्याय काल की अवधारणा को जैनागमों में ढूंढना चाहे तो स्थानांगसूत्र में प्रकट रूप से 28 एवं अप्रकट रूप से 32 अनध्याय काल का वर्णन प्राप्त होता है। 44 इस आगम में चार महोत्सव सम्बन्धी पूर्णिमाओं में स्वाध्याय नहीं करने का निर्देश परवर्ती मालूम होता है क्योंकि वहाँ आसोजी, कार्तिकी, आषाढ़ी एवं चैत्री पूर्णिमा के पश्चात आने वाली प्रतिपदा ही अस्वाध्याय रूप मानी गई हैं। हमें चार महोत्सव सम्बन्धी पूर्णिमा के अस्वाध्याय का सुस्पष्ट वर्णन निशीथसूत्र में उपलब्ध होता है, परन्तु यहाँ इस विषय का सूचन प्रायश्चित्त के रूप में किया गया है। जो मुनि इन चार महोत्सव के दिनों में स्वाध्याय करता है या स्वाध्याय करने वाले का अनुमोदन करता है उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है । 45 इस प्रकार स्थानांगसूत्र में जो अस्वाध्याय काल कहे गये हैं निशीथसूत्र में उनका उल्लेख प्रायश्चित्त के रूप में किया गया है। इसके अनन्तर व्यवहारसूत्र में अस्वाध्याय के कारणों का उल्लेख न करते हुए भी अस्वाध्यायकाल में स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है तथा शारीरिक अस्वाध्याय की स्थितियाँ होने पर भी स्वाध्याय के विषय में विधिनिषेध का कथन किया है। 46 इस तरह मूलागमों में अस्वाध्याय काल के सम्बन्ध में उक्त चर्चा प्राप्त होती हैं। यदि आगमिक व्याख्या साहित्य का अध्ययन किया जाए तो वहाँ आवश्यकनिर्युक्ति, निशीथ भाष्य, व्यवहार भाष्य आदि में अस्वाध्याय काल का विवरण अत्यन्त स्पष्टता के साथ उपलब्ध होता है। इन टीकाओं में अस्वाध्याय के मुख्यतः दो भेद किए गए हैं उसमें परसमुत्थ अस्वाध्याय को पाँच प्रकार का बतलाया है। इन्हीं भेदों के आधार पर अन्य भेद-प्रभेदादि की चर्चा की गई है | 47 अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करने के प्रयोजन, अनध्याय काल में स्वाध्याय करने के दोष, स्वाध्याय के अपवाद आदि महत्त्वपूर्ण विषय भी व्याख्या साहित्य में पढ़ने को मिलते हैं। यदि आगमेतर (परवर्ती) साहित्य का आलोडन करते हैं तो श्वेताम्बर परम्परा में इस विषयक प्रवचनसारोद्धार 48 तथा दिगम्बर परम्परा में ‘मूलाचार' नाम का ग्रन्थ देखा जाता है । 49 यद्यपि प्रस्तुत विषय से सम्बन्धित सामान्य चर्चा करने वाले अन्य ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं, किन्तु तत्सम्बन्धी सुनियोजित स्वरूप प्रवचनसारोद्धार एवं उसकी टीका में तथा मूलाचार एवं उसकी टीका में परिलक्षित होता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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