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________________ 92... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ___मल विसर्जन भूमि से सौ अरत्नि (सबसे छोटा) परिमाण दूर, मूत्र विसर्जन के स्थान से पचास अरत्नि दूर, मनुष्य सम्बन्धी अवयवों के स्थान से पचास धनुष और तिर्यंचों के शरीर सम्बन्धी अवयवों के स्थान से पच्चीस धनुष परिमाण की क्षेत्र भूमि शुद्ध होने पर ही स्वाध्याय करना चाहिए, अन्यथा अस्वाध्याय होता है। ___व्यन्तरों द्वारा भेरी ताड़न जैसी आवाज करने पर, उनकी पूजा का संकट होने पर, खेतों के कार्य होने पर, चाण्डाल बालकों द्वारा समीप में झाडू-बुहारी करने पर, अग्नि, जल व रूधिर की अधिकता होने पर और किन्हीं जीवों के शरीर से मांस एवं अस्थियों के निकाले जाने पर क्षेत्र शुद्धि न होने तक उस स्थान पर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। इन स्थानों की शुद्धि करने के पश्चात मुनि स्वयं के हाथ और पैरों को शुद्ध करें, तदनन्तर विशुद्ध मन युक्त होता हुआ निर्दोष भूमि पर स्थित होकर वाचना ग्रहण करें। पर्व दिनों में, नन्दीश्वर द्वीप के महोत्सव के श्रेष्ठ दिनों में, अष्टाह्निका के दिनों में और सूर्य-चन्द्र ग्रहण होने पर सुयोग्य मुनि को अध्ययन नहीं करना चाहिए। भारी दुःख से युक्त और रोते हुए प्राणियों को देखने या उन जीवों के समीप होने पर, मेघ गर्जना एवं बिजली चमकने पर और अतिवृष्टि के साथ उल्कापात होने पर अध्ययन नहीं करना चाहिए।43 अस्वाध्याय काल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि श्रमण परम्परा में तीर्थंकर पुरुष द्वारा उपदिष्ट एवं गणधर मुनियों द्वारा ग्रथित सूत्र ‘आगम' कहलाते हैं। आगम सूत्रों का अध्ययन या पुनरावर्तन करना स्वाध्याय है। आगमों के अतिरिक्त श्रुतधर मुनियों द्वारा विरचित शास्त्रों का अध्ययन करना भी स्वाध्याय है। किन्तु आवश्यक क्रिया से सम्बन्धित जैसे सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के सूत्र एवं स्तव-स्तोत्रादि को स्वाध्याय की कोटि में नहीं माना गया है। अत: आवश्यक सूत्रादि के अभ्यास हेतु समय का कोई प्रतिबंध नहीं है यद्यपि आगम देववाणी (अर्धमागधी भाषा) में संकलित होने से देवाधिष्ठित और मन्त्ररूप माने जाते हैं, अतएव सूत्रागम को योग्य काल में ही ग्रहण करना चाहिए, ऐसी जिनाज्ञा है। उनके अध्ययन हेतु अयोग्य काल अनध्याय काल कहलाता है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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