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90... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण विराधना आदि दोषों के निराकरणार्थ अस्वाध्याय सम्बन्धी सभी कालों में स्वाध्याय का प्रतिषेध करना चाहिए। अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने के आपवादिक कारण
व्यवहारभाष्य के अनुसार अस्वाध्याय काल होने पर भी निम्न आपवादिक स्थितियों में यतनापूर्वक स्वाध्याय किया जा सकता है____ आगाढ़ योग के वहन काल में स्कन्दक और चमरेन्द्र के प्रत्यासन्न होने पर उनके अनुग्रह के लिए अनुद्दिष्ट स्कन्दक उद्देशक का स्वाध्याय रात्रि में तीन बार और दिन में अस्वाध्याय काल में भी किया जा सकता है।
गृहस्थ के घर में प्रतिचारणा सम्बन्धी अनिष्टकारी शब्द श्रवण से बचने के लिए कालिक या उत्कालिक श्रुत का अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय किया जा सकता है। ____ कारणवश यथाच्छंद (शिथिलाचारी) के उपाश्रय में रहते समय उनकी कल्पित सामाचारी सुनाई न दें इसलिए अस्वाध्याय काल में भी स्वाध्याय किया जा सकता है।
कोई मुनि कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो रात्रि जागरण के निमित्त मेघनाद आदि अध्ययनों का अस्वाध्याय काल में भी परावर्तन किया जा सकता है। ___जिस मुनि के समीप जो श्रुत तत्काल ग्रहण किया है, यदि वह कालगत हो जाए और वह अध्ययन दुर्लभ हो तो उसकी अव्यवच्छित्ति के लिए अस्वाध्याय काल में भी उसका परावर्तन किया जा सकता है।
फलितार्थ यह है कि श्रुतार्जन की अव्यवच्छित्ति, सामाचारी नियम की परिपालना एवं संयम धर्म की अक्षुण्णता आदि कारणों से पूर्वोक्त स्थितियों में स्वाध्याय कर सकते हैं।1
दिगम्बर मान्यता में अस्वाध्याय द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव सम्बन्धी अस्वाध्याय
आचार्य वट्टकेर रचित मूलाचार में द्रव्यादि की अपेक्षा से अस्वाध्याय का वर्णन करते हुए कहा गया है कि शरीर में ज्वर, उदर रोग, शिरोरोग, कुत्सित स्वप्न, शरीर का रुधिर, विष्ठा, मूत्र आदि से लिप्त होना, अतिसार और पीव बहना द्रव्य अपेक्षा से अस्वाध्याय है। वाचनाचार्य के अधिष्ठित प्रदेश से चारों