SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...89 औत्पातिक अस्वाध्याय के प्रकारों में धूल की वर्षा होने पर समूचा वातावरण पृथ्वी-वायुकायमय बन जाता है। मांस, रूधिर आदि की वर्षा होने पर वातावरण प्रदूषण युक्त बन जाता है। उस समय अंगों का हलन-चलन करने से पृथ्वीकाय एवं वायुकाय जीवों का घात होता है और पर्यावरण दूषित होने से स्वाध्याय दूषित होता है अतएव स्वाध्याय का निषेध किया गया है। देवकृत विद्युत, गर्जन, उल्कापात आदि के समय वातावरण में अग्निकायिक जीवों के व्याप्त होने एवं गर्जनादि द्वारा लोगों की भयभीत स्थिति उत्पन्न होने से जीव विराधना एवं लोक विरुद्ध प्रवृत्ति होती है। युद्धादि के समय स्वाध्याय करने पर यदि कोई वाणव्यंतर देव कौतुकवश युद्ध देखने आए हों और वे साधु को स्वाध्याय करते हए देख लें तो उन्हें छल सकता है। राजादि की मृत्यु के समय स्वाध्याय किया जाए तो लोगों को साधुओं के प्रति अप्रीति हो सकती है कि ये कैसे लोग है? इन्हें कोई दु:ख नहीं है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि काल, विनय आदि के भेद से ज्ञानाचार आठ प्रकार का है। उसमें 'काल' पहला है। अकालध्यायी साधु-साध्वी ज्ञानाचार के प्रथम प्रकार की विराधना करते हैं, जबकि काल आदि के उपचार से ही विद्या सिद्ध होती है उसके बिना कुपित होकर विद्या की अधिष्ठात्री देवी अथवा अन्य क्षुद्रदेवता उस विद्या को नष्ट कर देते हैं। दूसरा हेतु यह है कि आगम सूत्र सलक्षण है, क्योंकि यह सर्वज्ञ भाषित है। सभी लक्षणोपेत वस्तुएँ देवता अधिष्ठित होती हैं। जैसे चक्रवर्ती का चक्र राजाओं से भी पूजा जाता है फिर भी चक्र का कीर्तन यत्र-तत्र आवश्यक नहीं होता। इसी प्रकार इस जगत में आठ गुणों से युक्त जिनेश्वर देव की सूत्रकृत वाणी पूजी जाती है किन्तु उसका अध्ययन करने वाले सर्वत्र प्राप्त नहीं होते, यथोक्त देश और काल में ही वह वाणी सिद्ध होती है। इस तरह जिनवाणी रूप आगम सूत्रों का अध्ययन सार्वकालिक सुसिद्ध है। तीसरा कारण यह है कि तीर्थंकर पुरुष पूर्वाह्न और अपराह्न में ही बोलते हैं। यही देशना अंगों में निबद्ध है, इसलिए अकाल-उत्काल में कालिक सूत्रों का पठन-पाठन नहीं होना चाहिए।40 उपर्युक्त विवेचन से निर्णीत होता है कि तीर्थंकर आज्ञा की अवहेलना, देवपूज्य शास्त्रों की आशातना, लोक विरुद्ध प्रवृत्ति, जीवहिंसा एवं संयम
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy