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________________ अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...87 इन चार महोत्सवों के अतिरिक्त आचारांगसूत्र में कथित अन्य अनेक महोत्सवों, जो सर्वत्र प्रचलित हों, उनके प्रमुख दिनों में भी स्वाध्याय नहीं करना चाहिए अर्थात उच्च स्वर से सूत्र के पाठादि नहीं बोलने चाहिए। यहाँ यह विशेष रूप से ध्यातव्य है कि जैनागमों की व्याख्याओं में और जैनेतर शास्त्रों में इन्द्र महोत्सव के लिए आसोज की पूनम कही गई है किन्तु भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कुछ भिन्न-भिन्न परम्पराएँ कालान्तर से प्रचलित हो जाती हैं, जैसे- लाट देश में श्रावण की पूनम को इन्द्र महोत्सव होना चूर्णिकार ने बताया है। इसी तरह किसी कारण से भादवा की पूनम को भी महोत्सव का दिन मानकर अस्वाध्याय मानने की परम्परा प्रचलित है जिससे कुल 10 दिन महोत्सव सम्बन्धी अस्वाध्याय के माने जाते हैं। इन दिनों में स्वाध्याय न करने का सामान्य कारण परम्परा माना जा सकता है।36 वर्तमान में उपरोक्त पूर्णिमा के दिन महोत्सव आदि की परम्पराएँ विलुप्त-सी हो गई है अत: इन दिनों के अस्वाध्याय काल सम्बन्धी विशिष्ट प्रयोजनों की प्रासंगिकता भी नहींवत रह गई हैं। फिर भी इन दिनों में स्वाध्याय का परिहार किया जाता रहा है और आगम आचरणा वश करना भी चाहिए। चार सन्ध्या सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण दिन और रात के सन्धि काल को सन्ध्या कहते हैं। इसी प्रकार दिन और रात्रि के मध्यभाग को भी सन्ध्या कहा जाता है, क्योंकि वह पूर्वभाग और पश्चिम भाग (पूर्वाह्न और अपराह्न) का सन्धिकाल है। इन सन्ध्याओं में स्वाध्याय न करने का प्रथम कारण यह बताया गया है कि ये चारों सन्ध्याएँ ध्यान का समय मानी गई हैं। स्वाध्याय से ध्यान का स्थान ऊँचा है अत: ध्यान के समय ध्यान करना ही उचित है।37 इन सन्ध्याओं में स्वाध्याय-निषेध का दूसरा कारण यह माना गया है कि दिवस और रात्रि का मध्यकाल लौकिक शास्त्रों के वाचन के लिए भी अयोग्य काल माना जाता है, क्योंकि दिन के मध्यकाल के समय वातावरण में सबसे अधिक हलचल रहती है। इस समय गृह, शरीर एवं व्यापार सम्बन्धी कार्य विशेष रूप से किये जाते हैं, मनि जीवन का आहार काल भी इसी समय माना गया है तथा रात्रि के मध्यकाल में नीरव शान्ति रहने से स्वाध्याय करने पर अड़ोसी-पड़ोसी लोगों की निद्रा टूट सकती है। यदि वे लोग धर्मविमुख हों या
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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