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________________ 86... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ये महोत्सव पूर्णिमा के दिन होते हैं। इन दिनों में देवगण आते हैं ऐसा कहा जाता है तथा अनेक लोगों का भी इधर-उधर आवागमन रहता है। भाष्यकार के निर्देशानुसार प्रतिपदा के दिन भी इन महोत्सवों के कुछ कार्यक्रम शेष रह जाते हैं अत: उस दिन को भी महामहोत्सव का दिन माना गया है।35 भगवान महावीर के समय इन्द्रमह, स्कन्धमह, यक्षमह और भृतमह ये चार महोत्सव जन-साधारण में प्रचलित थे। आचारांगसूत्र में अनेक महोत्सवों का उल्लेख है। उसमें पूर्वोक्त चारों महोत्सवों के नाम भी उल्लेखित हैं। निशीथभाष्य के अनुसार आषाढ़ी पूर्णिमा को इन्द्रमह, आश्विनी पर्णिमा को स्कन्धमह, कार्तिकी पूर्णिमा को यक्षमह और चैत्री पूर्णिमा को भूतमह मनाया जाता था। इन उत्सवों में सम्मिलित होने वाले लोग मदिरा-पान करके नाचते-कूदते हुए अपनी परम्परा के अनुसार इन्द्रादि की पूजन आदि करते थे। उत्सव के दूसरे दिन अपने मित्रादिकों को बुलाते और मदिरापान पूर्वक भोजनादि करते-कराते थे। इन महाप्रतिपदाओं के दिन स्वाध्याय-निषेध के अनेक कारणों में से एक प्रधान कारण यह बताया गया है कि महोत्सव में सम्मिलित लोग समीपवर्ती साध और साध्वियों को स्वाध्याय करते अर्थात उच्चारण पूर्वक शास्त्र-वाचना आदि करते हुए देखकर भड़क सकते हैं और मदिरा पान से उन्मत्त होने के कारण उपद्रव भी कर सकते हैं। अत: यही श्रेष्ठ है कि उस दिन साधु-साध्वी मौनपूर्वक अपनी धर्म-क्रियाओं को सम्पन्न करें। दूसरा कारण यह बताया गया है कि जहाँ निकट में जन साधारण का जोरजोर से शोरगुल हो रहा है, वहाँ स्वाध्याय रसिक मुनिजन एकाग्रता पूर्वक शास्त्र की शाब्दिक या अर्थवाचना को ग्रहण भी नहीं कर सकते हैं। स्वाध्याय निषेध का तीसरा हेतु यह माना जा सकता है कि उन दिनों में अनेक तरह के देव परिभ्रमण करते हैं, वे भिन्न-भिन्न स्वभावी और कौतहली होते हैं। स्वाध्याय के कारण उनकी गति में स्खलना हो जाने पर वे उपद्रव कर सकते हैं। ऋद्धिसम्पन्न देव स्खलना न होने पर भी उपद्रव कर सकते हैं। __ स्वाध्याय निषेध का यह हेतु भी माना जाता है कि जिन दिनों मनोरंजनआनन्द आदि के उत्सव विशेष रूप से मनाये जाते हों वे दिन शास्त्र वाचन हेतु लोक में अव्यावहारिक समझे जाते हैं। लोग भी नशे में उन्मत्त होकर भ्रमण करते हुए द्वेषवश या कुतुहलवश उपद्रव कर सकते हैं। अतः इन आठ दिनों में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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