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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...85
के लिए परम बाधक है। दूसरे, उस ग्रहण काल में मिथ्यात्वी देवों का संचार अथवा मिथ्यादृष्टियों में अपने देव को राहु द्वारा ग्रसित करने पर आक्रोशादि होने से वातावरण संक्षुब्ध होता है अत: स्वाध्याय निषेध का यह कारण भी माना जा सकता है।
राज मृत्यु और युद्ध के समय स्वाध्याय करने पर राजा या राज कर्मचारियों को मुनि के प्रति अप्रीति या द्वेष उत्पन्न हो सकता है, कारण कि राज्य में तो अशान्त वातावरण है, सभी लोग क्षुभित एवं भय की स्थिति में हैं और इन साधुओं को किसी तरह की कोई परवाह ही नहीं है? ये साधु लोग तो अपने स्वाध्याय आदि धर्म आराधनाओं में मग्न हैं इस प्रकार की द्वेष बुद्धि उत्पन्न न हो एतदर्थ उक्त प्रसंगों में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। __तिर्यंच एवं मनुष्य सम्बन्धी अशुचि क्रमश: 60 और 100 हाथ के भीतर हो तो वसति के आस-पास का वातावरण अशुद्ध हो जाने से अस्वाध्याय होता है। आगमवाणी देववाणी रूप होने से उसका उच्चारण पवित्र स्थान में ही करना चाहिए अन्यथा मिथ्यात्वी एवं कौतुहली देवों द्वारा उपद्रव करने की सम्भावना बनी रहती है। चार महामहोत्सव एवं चार महाप्रतिपदा सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण ___आषाढ़ी पूर्णिमा, आसोजी पूर्णिमा, कार्तिकी पूर्णिमा और चैत्री पूर्णिमाइन चारों पूर्णिमा के दिन बड़े-बड़े महोत्सव मनाये जाते हैं। प्रवचनसारोद्धार की टीकानुसार पूर्णिमा के उत्सव जिस दिन से प्रारम्भ होते हैं उस दिन से लेकर पूर्णिमा तक अस्वाध्याय रहता है। ये उत्सव कहीं-कहीं हिंसक रूप में मनाये जाते हैं जैसे- देवी-देवताओं के सम्मुख बलि देना आदि। जिस देश में जिस पूर्णिमा को जितने समय तक उत्सव चलता है उस देश में उतने समय तक स्वाध्याय का परिहार करना चाहिए। यद्यपि उत्सव पूर्णिमा को पूर्ण हो जाते हैं लेकिन उसकी अनुभूति दूसरे दिन भी रहती है अतः प्रतिपदा के दिन भी स्वाध्याय को वर्जित कहा है।34
निशीथभाष्य के मतानुसार चारों महोत्सव क्रमश: इन्द्र से, कार्तिकेय से, यक्ष से एवं भूत-व्यन्तर जाति के देवों से सम्बन्धित हैं। इन्हें प्रसन्न रखने के लिए लोग इनकी पूजा-प्रतिष्ठा करते हए दिन भर खाना-पीना, गाना-बजाना, नाचना-घूमना, मद्यपान करना आदि मौज शोक करते हुए प्रमोद पूर्वक रहते हैं।