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84... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
दस आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण
आकाश सम्बन्धी दस अस्वाध्याय में से उल्कापात, दिग्दाह, गर्जन, विद्युत, निर्घात- इन पाँच प्रकार की स्थिति होने पर तेउकाय की विराधना होती है, गर्जन होने पर पशु-पक्षी आदि एवं सामान्य जीव भयभीत हो जाते हैं, बिजली चमकने पर भयावह स्थिति उत्पन्न होने की संभावना रहती है अत: उस समय स्वाध्याय करने से जीव विराधना, लोकविरुद्ध प्रवृत्ति एवं स्वाध्यायोच्चार में स्खलना आदि दोषों की सम्भावना रहती है।
चातुर्मास काल में उल्कापात आदि होने पर अस्वाध्याय नहीं होता, क्योंकि उस समय विद्युत-गर्जन आदि स्वाभाविक रूप से होते हैं। ___'यूपक' के समय सन्ध्या काल का निर्णय न हो पाने से अस्वाध्याय रहता है, क्योंकि उस समय स्वाध्यायार्थ वैरात्रिक काल ग्रहण किया जाता है और जब सन्ध्या काल अनिर्णय या अज्ञात स्थिति में हो तब काल ग्रहण न करने से अस्वाध्याय होता है।
धूमिका-महिका के समय अप्काय की विराधना से बचने के लिए वाचिकस्वाध्यायादि, कायिक-प्रतिलेखनादि क्रियाएँ करने का प्रतिषेध है। अन्य अस्वाध्याय कालों में स्वाध्याय करने पर अप्काय, तेउकाय, वाउकाय आदि एकेन्द्रिय जीवों के हिंसा की पूर्ण सम्भावना रहती है। अत: उन जीवों के संरक्षण हेतु अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। दस औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण
औदारिक (शारीरिक) अशुद्धि के समय स्वाध्याय करने पर लोक व्यवहार से विरुद्ध आचरण होता है, आगम सूत्रों की आशातना होती है, जिनवाणी का अपमान होता है तथा स्थानीय अशुचि वायुमण्डल में विकीर्ण होने उससे तनमन भी प्रभावित होते हैं, जिससे स्वाध्याय अर्थात उच्चारण आदि शुद्धि भी नहीं रह पाती है।
श्मशान का वातावरण ही दूषित होता है, अत: वहाँ स्वाध्याय करने का प्रश्न ही नहीं उठ सकता। चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय समस्त लोक या अमुक स्थान राहू एवं केतु की दूषित किरणों से आप्लावित हो जाता है जिससे वातावरण की पवित्रता में कमी आ जाती है और उससे चैतन्य तत्त्व भी प्रभावित होता है परिणामत: चित्त की एकाग्रता खण्डित हो सकती है जो कि स्वाध्याय