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________________ अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...83 पारलौकिक फल यह है कि उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती, कारण कि श्रुतज्ञान का स्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, किन्तु असमय में अभ्यास किया जाये या विपरीत विधि पूर्वक किया जाये तो इनके सुपरिणाम कैसे उत्पन्न हो सकते हैं? अत: श्रुत की आशातना से संसार की परम्परा में वृद्धि होती है। अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने वाला ज्ञानाचार, दर्शनाचार और चारित्राचार की विराधना करता है। चारित्र की विराधना से मोक्ष का स्वयमेव अभाव हो जाता है। मूलाचार (दिगम्बर) के अनुसार जो मुनि सूत्र और अर्थ की शिक्षा के लोभ से द्रव्य-क्षेत्र आदि की शुद्धि का ध्यान न रखते हुए स्वाध्याय करते हैं वे सम्यक्त्व की विराधना, अस्वाध्याय शास्त्र आदि की अप्राप्ति, कलह, व्याधि या वियोग को प्राप्त होते हैं।32 मूलाचार की टीका में संध्याकाल एवं मुख्य पर्वतिथियों में स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है तथा उसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए कहा है कि अष्टमी के दिन किया गया अध्ययन-अध्यापन गुरु और शिष्य दोनों का वियोग कराने वाला होता है। पूर्णमासी के दिन किया गया अध्ययन कलह उत्पादक और चतुर्दशी के दिन किया गया अध्ययन विघ्न जनक होता है। यदि साधुजन कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या के दिन अध्ययन करते हैं तो वह विद्या और उपवास विधि सब विनाश को प्राप्त हो जाते हैं। मध्याह्न काल में किया गया अध्ययन श्रमण जीवन को नष्ट करता है। दोनों संध्या कालों में किया गया अध्ययन व्याधि उत्पन्न करता है तथा मध्यम रात्रि में किये गये अध्ययन से अनुरक्त जन भी द्वेषी हो जाते हैं।33 इस तरह हम पाते हैं कि अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने से जिनाज्ञा का अतिक्रमण, अनवस्था (दोष-श्रृंखला का प्रारम्भ), मिथ्यात्व की प्राप्ति, ज्ञान की विराधना, श्रुतज्ञान की अभक्ति, लोकविरुद्ध प्रवृत्ति, प्रमत्त छलना, श्रुतज्ञान के आचार की विराधना, दीर्घकालिक रोग, सद्योघाति आतंक, तीर्थंकर प्रज्ञप्त धर्म से च्युति, चारित्र धर्म से च्युति, दीर्घकाल तक संसार परिभ्रमण आदि दोष लगते हैं। अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करने के प्रयोजन प्रस्तुत अध्याय के प्रारम्भ में 32 प्रकार का अस्वाध्याय बतलाया गया है, उन स्थितियों में स्वाध्याय क्यों नहीं करना चाहिए? इसके कुछ प्रयोजन निम्न प्रकार हैं
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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