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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन 79
(शरीर के अवयवों) को एकत्रित करें। फिर उन्हें परित्यक्त करें। यदि कलेवर के कुछ अवयव रह जाएं तो भी वे वहाँ यतना पूर्वक स्वाध्याय कर सकते हैं, क्योंकि उनका प्रयत्न अशठ भाव से किया गया है अतः स्वाध्याय करना शुद्ध है।
• यदि मुनियों की वसति से सात घर के भीतर नगर प्रधान, नगर प्रधान के रूप में नियुक्त व्यक्ति, विशाल परिवार से युक्त शय्यातर अथवा कोई विशिष्ट व्यक्ति मर गया हो तो एक अहोरात्रि तक अस्वाध्याय काल रहता है।
• यदि किसी स्त्री का रुदन सुनाई दे तब तक भी अस्वाध्याय होता है। • छेद सूत्रों में अस्वाध्याय के कारणों को बताते हुए यह भी कहा गया है कि अशिव, अवमौदर्य एवं आघात स्थानों में अनेक लोग दिवंगत होते हैं। इन स्थानों का विशोधन किए बिना वहाँ बारह वर्ष का अस्वाध्याय काल होता है । यदि वे स्थान अग्नि से जल गए हों अथवा पानी से प्लावित हो गए हों तो वहाँ उसके बाद स्वाध्याय किया जा सकता है। यदि श्मशान लोगों द्वारा आवासित हो गया हो और उस स्थान का शोधन कर लिया गया हो तो वहाँ स्वाध्याय किया जा सकता है। 25
• छोटे गाँव में कोई मर गया हो और जब तक उस शव को बाहर निष्कासित नहीं किया जाता तब तक स्वाध्याय वर्जित है। नगर अथवा बड़े गाँव के वाटक तथा गली में कोई मरा हो तो उस वाटक या गली में स्वाध्याय का परिहार करना चाहिए, शेष स्थानों पर अस्वाध्याय नहीं होता है।
• यदि किसी मृत कलेवर को उपाश्रय के आगे से ले जाया गया हो तो उस समय सौ हाथ के भीतर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । यहाँ प्रश्न उठता है कि जब कलेवर ले जाया जाये उस समय फूल एवं जीर्ण वस्त्र बिखेरे जाते हैं यदि वे सौ हाथ के भीतर दिखाई पड़ते हों तो स्वाध्याय करना चाहिए या नहीं ? इसके समाधान में आचार्य कहते हैं कि ले जाए जाते हुए मृतक को छोड़कर पुष्प आदि अस्वाध्याय का कारण नहीं होते हैं। शरीर का अस्वाध्याय रुधिर आदि के आधार पर चार प्रकार का है। इनके अतिरिक्त और किसी द्रव्य का अस्वाध्याय नहीं होता है।
• व्यवहारभाष्य26, निशीथभाष्य 27 आदि में अस्वाध्याय के अन्य कारणों का उल्लेख करते हुए आत्मसमुत्थ अर्थात स्वयं के शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय