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________________ 78... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण सौ हाथ की सीमा में हो तो बारह वर्ष तक अस्वाध्याय होता है। जो अस्थियाँ श्मशान में दग्ध हो चुकी हैं उनको छोड़कर शेष जो दग्ध नहीं हुई हैं अथवा जो अनाथ शव जलाया नहीं गया है अथवा खोद कर गाड़ा गया है तो ये स्थान बारह वर्ष तक के लिए स्वाध्याय का घात करते हैं तथा डोम, लोगों के यक्षायतन, रूद्रदेव के यक्षायतन एवं मातगृहों के नीचे मनुष्यों की अस्थियाँ (कपाल) रखी जाती है इससे उस क्षेत्र में भी बारह वर्ष तक अस्वाध्याय रहता है। ___समाहारत: अस्वाध्याय के सभी स्थानों में अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन (स्वाध्याय) किया जा सकता है, इसका निषेध कहीं भी नहीं है।21 सामान्य कारण सम्बन्धी अस्वाध्याय आवश्यकनियुक्ति में अस्वाध्याय के सामान्य हेतुओं का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि राजा, अमात्य, सेनापति आदि विशिष्ट व्यक्तियों की मृत्यु हो जाने पर अथवा राज्य में किसी प्रकार का शोक उत्पन्न हो जाने पर जब तक दूसरे राजा की नियुक्ति न हो अथवा प्रजा शोक शक्ति मुक्त न हो जाये तब तक अस्वाध्याय रहता है। दूसरे, राजा की नियुक्ति एवं व्युद्ग्रह की शान्ति हो जाने पर भी एक अहोरात्रि तक अस्वाध्याय काल रहता है।22 • यदि महामारी, दुर्भिक्ष अथवा युद्ध में अनेक व्यक्तियों की मृत्यु हो गई है और वह स्थान अग्नि, जल आदि द्वारा शुद्ध न किया गया हो तो वहाँ उस स्थान या नगर विशेष में बारह वर्ष तक अस्वाध्याय काल रहता है। • यदि वसति (उपाश्रय) से सात घरों के बीच नगर मुखिया आदि महत्तर पुरुष मर गया हो तो एक अहोरात्र तक अस्वाध्याय काल रहता है।23 • व्यवहारभाष्य एवं प्रवचनसारोद्धार की टीकानुसार मुनियों की वसति से सौ हाथ के भीतर किसी अनाथ की मृत्यु हो गई हो तो भी अस्वाध्याय होता है। यदि साधु के निवेदन करने पर शय्यातर या श्रावक उस कलेवर को वहाँ से हटवा दें तो स्वाध्याय कर सकते हैं अन्यथा मुनियों को अन्य वसति में चले जाना चाहिए।24 • यदि उक्त स्थिति में अन्य कोई योग्य बसति प्राप्त होने की सम्भावना न हों और सागारिक नहीं देख सकते हों तो रात्रि में वृषभ गीतार्थ मुनि 'अनाथमृतक' को अन्यत्र परिष्ठापित कर दें। कदाचित जानवरों ने शव को क्षतविक्षत कर दिया हो तो सर्वप्रथम चारों ओर से अत्यन्त सावधानी पूर्वक पुद्गलों
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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