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76... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण न हुआ हो तो वहाँ अस्वाध्याय काल नहीं रहता है, स्वाध्याय कर सकते हैं, किन्तु यदि बिखर जाए तो अस्वाध्याय काल होता है। टीकाकार सिद्धसेन के अभिप्राय से उक्त कथन अयुक्त है क्योंकि शोणित, मांस, चर्म एवं अस्थि चारों की उपस्थिति में स्वाध्याय करने का निषेध है। इस दृष्टि से कलेवर भी अस्वाध्याय का कारण है। अत: कलेवर बिखरा न हो तो भी वहाँ अस्वाध्याय काल रहता है।
अण्डा- स्वाध्याय भूमि से साठ हाथ के भीतर अंडा गिर जाए पर फूटे नहीं तो उसे दूर फेंक देने के पश्चात वहाँ अस्वाध्याय नहीं रहता है, स्वाध्याय कर सकते हैं। यदि अंडा फूट जाए तो उस भूमि को स्वच्छ कर लेने के पश्चात भी तीन प्रहर अस्वाध्याय काल रहता है।
• यदि अंडा वस्त्र में गिरकर फूट जाए तो उसे स्वाध्याय भूमि से साठ हाथ बाहर ले जाकर धोने के पश्चात वहाँ अस्वाध्याय नहीं रहता है, वस्त्र धो लेने के बाद स्वाध्याय कर सकते हैं।
. मक्खी का पाँव डूब जाए यदि इतना भी अंडे का रस कहीं गिरा हआ हो तो वहाँ अस्वाध्याय होता है। उस स्थान को स्वच्छ कर लेने के बाद भी तीन प्रहर तक स्वाध्याय नहीं कर सकते हैं।
• यदि स्वाध्याय भूमि से साठ हाथ के भीतर हथिनी की जराय रहित की प्रसूति हुई हो तो वहाँ तीन प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है तथा गाय की जरायु सहित प्रसूति हुई हो तो जब तक 'जरायु' न गिरे तब तक अस्वाध्याय होता है तथा जरायु गिरने के पश्चात तीन प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है।
• यदि साठ हाथ के भीतर अंडा एवं मृत जीव के अशुचि कण, मांसकण या जरायुकण राजमार्ग पर गिरे हों तो वह अस्वाध्याय का कारण नहीं होता है, कारण कि राजमार्ग पर गमनागमन की संभावनाएँ अधिक होने से अशचि के बिन्दु तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। इसमें भी जिनाज्ञा की प्रधानता है। यदि तिर्यंच के रक्त, मांस आदि राजमार्ग से हटकर साठ हाथ के भीतर कहीं गिरे हुए हों तो वर्षा के प्रवाह में बहने के पश्चात अथवा आग द्वारा जलने के पश्चात ही वहाँ स्वाध्याय कर सकते हैं, अन्यथा नहीं।
उपर्युक्त प्रकार से तिर्यंच सम्बन्धी अस्वाध्याय और स्वाध्याय काल जानकर यथोचित मर्यादा का पालन करने से स्वाध्याय एवं संयम भाव प्रवर्द्धित होते हैं।