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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन 75
में जाकर स्वाध्याय कर सकते हैं। यदि वर्तमान स्थिति पर विचार करें तो आज जहाँ खुल्ले आम मांस आदि का विक्रय होता है उन शहरों में शास्त्रोक्त विधि के अनुसार मुनियों के लिए स्वाध्याय आदि करना कठिन हो गया है।
पुनश्च रक्तादि के गिरे रहने से होने वाला अस्वाध्याय सम्बन्धी शास्त्रीय वर्णन इस प्रकार ज्ञातव्य है
रक्त— जहाँ स्वाध्याय करना हो उस भूमि से साठ हाथ के भीतर गिरा हुआ रक्त यदि जल के प्रवाह में बह जाये तो वहाँ तीन प्रहर के पश्चात स्वाध्याय कर सकते हैं।
मांस - स्वाध्याय भूमि से साठ हाथ के भीतर मांस गिरा हुआ हो और वह स्थान जल आदि से स्वच्छ कर लिया गया हो, तब भी सफाई करने के बाद तीन प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है, क्योंकि उस स्थान को साफ करते समय भी मांस के कुछ कण गिरने की संभावना रहती है। • इसी तरह स्वाध्याय भूमि से साठ हाथ के भीतर मांस पकाया जा रहा हो तब पकाने की क्रिया से लेकर पकने के पश्चात भी तीन प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है। • यदि स्वाध्याय भूमि से साठ हाथ के बाहर मांस युक्त स्थान को धोने एवं मांस पकाने की क्रिया की जा रही हो तब स्वाध्याय कर सकते हैं।
• अन्य मतानुसार बिल्ली द्वारा मृत चूहे का मांसपिण्ड बिखेरा गया न हो। बिल्ली उसे मुख में दबाकर या निगलकर ले गई हो, तो उस स्थान पर स्वाध्याय कर सकते हैं।
• कुछ आचार्यों के अनुसार चूहे का मृत कलेवर (मांस आदि) लेशमात्र भी बिखरा नहीं है, यह जानकारी कैसे सम्भव हो ? इसलिए जब तक उस स्थान का सम्यक अवलोकन नहीं किया जाता तब तक वहाँ तीन प्रहर का अस्वाध्याय काल तो रहता ही है। • यदि सम्यक निरीक्षण करने के उपरान्त भी मांसकण गिरे हुए रह जायें तो तीन प्रहर के पश्चात वे शुष्क हो जाते हैं अथवा अन्य हिंसक प्राणियों द्वारा खा लिये जाते हैं अतः उस स्थिति में दोष की संभावना नहीं रहती है, क्योंकि सामाचारी का पालन करने से दोष दोष रूप नहीं रह
जाता।
• कुछ आचार्यों के अनुसार जहाँ चूहे आदि स्वतः मृत्यु प्राप्त हुए हों अथवा अन्य के द्वारा मारे गये हों, किन्तु उनका कलेवर अंशमात्र भी विकीर्ण