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74... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
(i) तिर्यंच सम्बन्धी- प्रवचनसारोद्धार टीका के मतानुसार तिर्यंच सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण भी तीन प्रकार के हैं-(i) जलचर सम्बन्धी (ii) स्थलचर सम्बन्धी और (iii) खेचर सम्बन्धी।
जल में उत्पन्न होने वाले मछली आदि प्राणियों से सम्बन्धित रक्त, मांस का दिखाई देना जलचर सम्बन्धी अस्वाध्यायिक है।
गाय, भैंस आदि से सम्बन्धित रक्त, मांस का दिखाई देना स्थलचर सम्बन्धी अस्वाध्यायिक है।
मोर, कबूतर आदि पक्षियों से सम्बन्धित रक्त, मांस का दिखाई देना खेचर सम्बन्धी अस्वाध्यायिक है।
नियुक्तिकार आर्य भद्रबाहु ने पूर्वोक्त तीनों से सम्बन्धित अस्वाध्यायिक (रक्त, मांस, मृतकलेवर आदि) द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के भेद से पुन: चार प्रकार का कहा है
___ 1. द्रव्यत:- तीनों प्रकार के तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का रक्त, मांस आदि दिखाई देने पर अस्वाध्याय काल होता है, जबकि विकलेन्द्रिय जीवों के रुधिर आदि देखे जाने पर अस्वाध्याय नहीं होता है।
2. क्षेत्रत:- तीनों प्रकार के तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का रुधिर आदि साठ हाथ के भीतर एवं मनुष्य का सौ हाथ के भीतर पड़ा हो तो अस्वाध्याय होता है। इससे आगे रूधिर आदि गिरे रहने पर अस्वाध्याय नहीं होता है।
3. कालत:- तिर्यंच पंचेन्द्रिय का रुधिर आदि जब से पड़ा हो या जब से देखा गया हो तब से लेकर तीन प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है, यदि बिल्ली आदि के द्वारा मारा हुआ चूहा आदि पड़ा हो तो आठ प्रहर का अस्वाध्याय होता है। ___4. भावत:- अस्वाध्याय की स्थिति होने पर नंदी आदि सूत्रों का स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है।
विशेष- प्रसिद्ध जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकर कहते हैं यदि तिर्यंच पंचेन्द्रिय के मांस आदि को कौए, कुत्ते आदि के द्वारा उस स्थान में चारों ओर बिखेर दिया गया हो।20 और वह गाँव हो तो तीन गली के पश्चात स्वाध्याय कर सकते हैं। यदि शहर हो और उधर से सेना या राजा की सवारी निकलती हो अथवा अनेक प्रकार के वाहन निकलते हों तो एक गली को छोड़कर भी स्वाध्याय कर सकते हैं। यदि समूचा गाँव मांस आदि के पुद्गलों से व्याप्त हो गया हो तो गाँव के बहिर्भाग