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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...73 आठ प्रहर, ऐसे सोलह प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
• यदि आकाश मेघ से आच्छादित हो और सूर्यग्रहण कब होगा? इस प्रकार की निश्चित जानकारी का अभाव हो, तब उस दिन सूर्योदय के समय से ही स्वाध्याय नहीं करना चाहिए तथा सूर्यास्त के समय सूर्य को ग्रसित हुआ ही अस्त होते हुए देख लिया गया हो तब उस दिन के चार प्रहर, उस रात्रि के चार प्रहर एवं आगामी अहोरात्र के आठ प्रहर- इस तरह सोलह प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
• यदि सूर्य दिन में ग्रसित हुआ हो और दिन में ही मुक्त हो जाए तो शेष दिन एवं आगामी अहोरात्रि का अस्वाध्याय होता है। इसे मध्यम अस्वाध्याय काल कहते हैं। यह अस्वाध्याय काल लगभग आठ प्रहर का होता है।
यहाँ प्रयुक्त 'अहोरात्रि' शब्द का अर्थ सूर्य एवं चन्द्र के लिए अलग-अलग है। सूर्य के लिए अहोरात्रि का अर्थ- सूर्य ग्रहण से मुक्त हुआ वह दिन और वही रात्रि अहोरात्रि कहलाती है, परन्तु चन्द्रग्रहण के सम्बन्ध में अहोरात्रि का अर्थ भिन्न है। जिस रात्रि को चन्द्र ग्रहण से मुक्त हुआ वह रात्रि तथा आगामी दिन मिलकर अहोरात्रि कहलाती है। ___ चन्द्र और सूर्य दोनों प्रकार के ग्रहण के विषय में आचरणा भी भिन्न-भिन्न हैं। यदि चन्द्रमा रात्रि में ग्रसित होकर रात्रि में ही मुक्त हो जाता है तो उस रात्रि का शेष काल ही अस्वाध्याय काल माना जाता है, क्योंकि सूर्योदय होते ही अहोरात्रि पूर्ण हो जाती है, परन्तु ग्रसित हुआ सूर्य दिन में मुक्त हो जाए तो शेष दिन और रात्रि पर्यन्त अस्वाध्याय काल रहता है, क्योंकि अहोरात्रि तभी पूर्ण होती है।
4. व्युद्ग्रह- युद्ध आदि के निमित्त से होने वाला अस्वाध्याय काल व्युद्ग्रह कहलाता है। दो राजाओं का युद्ध, दो सेनापतियों का युद्ध, प्रसिद्ध स्त्रियों का परस्पर युद्ध, मल्ल युद्ध, ग्रामाधिपतियों का युद्ध, बाहुयुद्ध होने पर तथा इनमें परस्पर कलह होने पर, पथराव या हाथापाई होने पर जब तक विग्रह शान्त न हो तब तक अस्वाध्याय काल रहता है।18
5. शारीरिक- देह सम्बन्धी या स्थान सम्बन्धी अशुद्धि के कारण होने वाला अस्वाध्याय काल शारीरिक कहलाता है। शारीरिक अस्वाध्याय दो प्रकार का निर्दिष्ट है-(i) तिर्यंच सम्बन्धी और (ii) मनुष्य सम्बन्धी।19