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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...71
5. गर्जन - बादलों का गर्जना । मेघगर्जना होने पर दो प्रहर का अस्वाध्याय रहता है।
6. यूपक - प्रत्येक शुक्ल पक्ष की दूज, तीज एवं चौथ - इन तीन दिनों का संध्याकाल यूपक कहलाता है। इस समय चन्द्र का प्रकाश संध्या पर पड़ने से संध्या का विभाग प्रतीत नहीं होता है अत: इन तीन दिनों में प्रादोषिक काल ग्रहण और प्रादोषिकी सूत्रपौरूषी नहीं होती, क्योंकि संध्या काल का यथार्थ ज्ञान नहीं होता। संध्या के विभाग को ढकने वाला दूज, तीज एवं चौथ का चांद यूपक कहलाता है। यूपक में एक प्रहर का अस्वाध्याय रहता है।
कई आचार्यों का अभिमत है कि शुक्ल पक्ष की इन प्रथम तीन तिथियों में सूर्य के उदय और अस्त के समय ताम्रवर्ण जैसे लाल और कृष्ण श्याम अमोघ मोघा (आकाश में प्रलम्ब श्वेत श्रेणियाँ) होते हैं, उन्हें यूपक कहा जाता कुछ आचार्य से अस्वाध्यायिक नहीं मानते हैं। जो मानते हैं उनके अनुसार यूपक में तीन प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है।
है।
7. यक्षादीप्त - आकाश में कभी-कभी दिखाई देने वाला विद्युत जैसा प्रकाश अथवा किसी दिशा विशेष में थोड़ी-थोड़ी देर में बिजली चमकने जैसा प्रकाश दिखाई देना यक्षादीप्त कहलाता है। यक्षादीप्त में एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
पूर्वोक्त अस्वाध्यायिकों में गांधर्वनगर और यक्षादीप्त ये दोनों निश्चित रूप से देवकृत होते हैं शेष दिग्दाह आदि देवकृत एवं स्वाभाविक दोनों तरह के होते हैं। स्वाभाविक में स्वाध्याय का निषेध नहीं है, किन्तु देवकृत में स्वाध्याय करना निषिद्ध है। तदुपरान्त जहाँ कारण का स्पष्ट ज्ञान न हो कि दिग्दाह आदि देवकृत हैं या स्वाभाविक ? वहाँ स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। लगभग उक्त स्थितियों के कारणों का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है अतः उस समय स्वाध्याय का परिहार करना चाहिए | 14
पूर्वोक्त अस्वाध्यायिक के अतिरिक्त अन्य भी देवकृत अस्वाध्याय काल हैं
जैसे
चन्द्रग्रहण - राहू के विमान से चन्द्र के विमान का उपराग (ढंकना) होना चन्द्रग्रहण कहलाता है। चन्द्रग्रहण होने पर जघन्य से आठ प्रहर एवं उत्कृष्ट से बारह प्रहर का अस्वाध्याय होता है। वह इस प्रकार समझने योग्य है