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70... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
धूलि धूसरित दिखाई देती रहें तब तक सूत्र सम्बन्धी अस्वाध्याय काल रहता है। इस वर्षा में गमनागमन की क्रिया हो सकती है।
2. मांसवृष्टि - मांस के टुकड़ों की वर्षा होना मांस वृष्टि है। इस वर्षा के होने पर एक अहोरात्र का अस्वाध्याय होता है। आज कल यह वर्षा प्रायः नहीं होती है।
3. रूधिरवृष्टि - रक्त बिन्दुओं की तरह लाल रंग की वर्षा होना रूधिरवृष्टि है। इस वर्षा में एक अहोरात्र का अस्वाध्याय होता है।
4. केशवृष्टि - केश की वर्षा होना केशवृष्टि है। यह वर्षा जहाँ तक हो वहाँ तक अस्वाध्याय रहता है।
5. शिलावृष्टि - ओला गिरना, पत्थरों का गिरना शिलावृष्टि है। इस वर्षा में जब तक ओले आदि गिरते रहें तब तक अस्वाध्याय रहता है।
6. रजोद्घात - हवा के कारण दिशाओं का धूलि धूसरित हो जाना तथा चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई देना रजोद्घात कहलाता है। रज - उद्घात में जब तक धूल गिरती है तब तक अस्वाध्याय रहता है । 13
3. देवप्रयुक्त - देवकृत उत्पात या उनके निमित्त से होने वाला अस्वाध्याय काल देव प्रयुक्त कहलाता है । आवश्यक नियुक्ति में देवकृत अस्वाध्याय के निम्न सात प्रकार कहे गये हैं- गान्धर्वनगर, दिग्दाह, विद्युत, उल्का, गर्जित, यूपक और यक्षादीप्त।
1. गान्धर्वनगर- चक्रवर्ती आदि के नगर में उपद्रव की सूचना देने वाला संध्याकाल में नगर के ऊपर नगर जैसा ही दूसरा नगर दिखाई देना, गान्धर्वनगर है। संध्याकाल में दिखाई देने वाला दूसरा नगर गन्धर्व नामक देव द्वारा निर्मित किया जाता है अतः इसका नाम गान्धर्वनगर है और इसीलिए यह देवकृत अस्वाध्याय काल माना गया है। गान्धर्व नगर में एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
2. दिग्दाह - दिशा विशेष में जलता हुआ प्रकाश दिखाई देना दिग्दाह कहलाता है। दिग्दाह में एक प्रहर का अस्वाध्याय रहता है।
3. विद्युत - बिजली का चमकना विद्युत है। बिजली चमकने पर एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
4. उल्का - आकाश से रेखामय अथवा प्रकाश युक्त बिजली का गिरना अथवा पुच्छल तारा का गिरना उल्का कहा जाता है । तारा गिरने पर एक प्रहर का अस्वाध्याय काल होता है।