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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...69 बुबुद्- जिस पानी में बुलबुले उठते हों, वह बुबुद् वर्षा कहलाती है। प्रचलित परम्परा के अनुसार इस वर्षा में आठ प्रहर के पश्चात तथा अन्य मतानुसार तीन दिन के पश्चात समूचा वातावरण अप्कायमय हो जाता है अत: सूक्ष्म जीवों के रक्षणार्थ इस समय अस्वाध्याय काल रहता है।
बुद्बुद्वर्ज- वह वर्षा जिस पानी में बुलबुले न उठते हों, बुबुद्वर्ज कहलाती है। इस वर्षा में पाँच दिन पश्चात समूचा वातावरण अप्कायमय बन जाता है अत: इस काल में भी स्वाध्याय करने का निषेध है।
जलस्पर्शिका- वह वर्षा जिसमें बूंदाबांदी होती हो अर्थात भूमि पर जल का स्पर्श मात्र होता हो जलस्पर्शिका कहलाती है। इस वर्षा में सात दिन के पश्चात समूचा वातावरण अप्कायमय हो जाता है।11
संयमघाती अस्वाध्याय काल का परिहार द्रव्य आदि की अपेक्षा इस प्रकार करना चाहिए
1. द्रव्यत:- बूंवर, सचित्तरज और वर्षा ये तीनों अस्वाध्याय के कारण हैं।
2. क्षेत्रत:- बूंवर आदि तीनों जितने क्षेत्र में गिरें उतने क्षेत्र में अस्वाध्याय रहता है अर्थात उस क्षेत्र में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
3. कालत:- बूंवर आदि जितने समय तक गिरें उतने समय तक अस्वाध्याय काल रहता है। ____4. भावत:- बूंवर, सचित्तरज और वर्षा के गिरते समय गमनागमन, प्रतिलेखन, प्रवचन आदि किसी तरह की आवश्यक क्रियाएँ भी नहीं करनी चाहिए। श्वासोश्वास लिए बिना एवं पलक झपकाये बिना जीवन चल नहीं सकता अत: इन क्रियाओं की छूट है। शेष सभी निष्प्रयोजन क्रियाएँ प्रतिषिद्ध हैं। ग्लान आदि की सेवा का कार्य हो तो यतना पूर्वक हाथ, आँख या अंगुली के इशारे का प्रयोग कर सकते हैं।12 संभाषण की जरूरत होने पर मुखवस्त्रिका के उपयोग पूर्वक बोलना चाहिए। ___2. औत्पातिक- प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक उत्पात के निमित्त से होने वाला अस्वाध्याय काल औत्पातिक कहा जाता है। आवश्यकनियुक्ति के मतानुसार इस अस्वाध्याय काल के छह स्थान हैं
1. पांशुवृष्टि- धुएं जैसे वर्ण वाली अचित्तरज पांशु कहलाती है, ऐसे अचित्त रज की वर्षा होना पांशुवृष्टि है। यह वर्षा जब तक होती रहे तथा दिशाएँ