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68... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
3. अपराह्न या मध्याह्न संधिकाल- जितने मुहूर्त का दिन हो उसके बीच का एक मुहूर्त समय मध्याह्न काल कहा जाता है। इसे अपराह्न भी कहते हैं। यह समय लगभग बारह बजे से एक बजे के बीच में आता है। दिन के परिमाण अनुसार इससे कुछ पहले या पीछे भी हो सकता है।
4. अर्धरात्रि- रात्रि का मध्यकाल। इसे अपराह्न के समान समझना चाहिए। परम्परा से स्थूल रूप में दिन और रात्रि के बारह बजे से एक बजे तक का समय माना जाता है। सूक्ष्म दृष्टि से दिन या रात्रि के मध्य भाग का एक मुहूर्त जितना समय होना चाहिए। इन सभी निषिद्ध स्थानों को मिलाने पर अस्वाध्याय के कुल 10 + 10 + 4 + 4 + 4 = 32 प्रकार होते हैं।
आगमिक व्याख्या साहित्य के अनुसार अस्वाध्याय के अन्य प्रकार (स्थान) निम्नानुसार हैं
आवश्यकनियुक्ति में अस्वाध्याय के मुख्यतः दो प्रकार प्रतिपादित किये हैं- 1. आत्मसमुत्थ- स्वाध्याय कर्ता के शरीर से सम्बन्धित रूधिर, मांस आदि। 2. परसमुत्थ- स्वाध्याय कर्ता से भिन्न व्यक्ति से सम्बन्धित रूधिर, मांस आदि।
परसमुत्थ अस्वाध्याय पाँच प्रकार का कहा गया है- 1. संयमघाती 2. औत्पातिक 3. देवप्रयुक्त 4. व्युद्ग्रह और 5. शारीरिक।10
1. संयमघाती- वह अस्वाध्याय काल जो संयम (चारित्र धर्म) का घात करता है, संयमघाती कहलाता है। संयम का घात करने वाले अस्वाध्यायिक काल तीन प्रकार के हैं- महिका, सचित्तरज एवं वर्षा।
(i) महिका- कुहरा। कार्तिक से माघ मास तक का काला इसमें धुंअर पड़ती है, इससे समूचा वातावरण अप्कायमय हो जाता है अत: इस समय अस्वाध्याय काल रहता है। . (ii) सचित्तरज- हवा के वेग से उड़ने वाली चिकनी मिट्टी, जो हल्के लालवर्ण की होती है, वह व्यवहार सचित्त है। इसके निरन्तर गिरते रहने पर वह मिट्टी तीन दिन के पश्चात पृथ्वीकायमय अर्थात सचित्त बन जाती है अत: इस समय अस्वाध्याय काल होता है। ____(iii) वर्षा- आकाश से पानी का गिरना वर्षा कहलाता है। वर्षा तीन तरह की होती है- बुबुद्, बुबुद्वर्ज और जलस्पर्शिका।