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अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...65 औदारिक शरीर वैक्रिय वर्गणा के पुद्गल से उदार – बड़े पुद्गल वाला होने से औदारिक कहलाता है। औदारिक शरीर को धारण करने वाले मनुष्य एवं तिर्यञ्च जीवों से सम्बन्धित दस प्रकार का अस्वाध्याय होता है। वह निम्न प्रकार है___ 11-12-13. हड्डी, मांस और रुधिर- तिर्यञ्च की हड्डी या मांस 60 हाथ और मनुष्य की हड्डी या मांस 100 हाथ के भीतर दिखाई दें तो अस्वाध्याय होता है। हड्डियाँ जली हई या धूली हई हो तो उसका अस्वाध्याय नहीं होता है। नियत स्थान के भीतर हड्डी-मांस गिरा हुआ हो तो 12 वर्ष तक अस्वाध्याय रहता है। यह बात दाँत के सम्बन्ध में भी समझनी चाहिए। द्रव्य से तिर्यञ्च जीवों के रुधिर आदि द्रव्य 60 हाथ के भीतर हो तो अस्वाध्यायिक माना गया है। क्षेत्र से 60 हाथ के बाहर हो तो स्वाध्याय कर सकते हैं अथवा क्षेत्र से तीन छोटी गलियाँ या एक राजमार्ग आड़ा हो तो स्वाध्याय कर सकते हैं। यह नगर की विधि है।
काल से तीन पौरुषी तक अस्वाध्याय रहता है अथवा काल से आघात स्थान (हिंसा की गई हो वहाँ) पर 8 प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है दूसरे दिन सूर्योदय से शुद्ध होता है।
भाव से आगम सूत्रों का अध्ययन नहीं करना।
इसी प्रकार मांस, अस्थि आदि धोने की या पकाने की क्रिया वसति के 60 हाथ के अंदर या बाहर होने पर चार भांगे बनते हैं। उनमें से तीन भागों में 60 हाथ + 3 प्रहर दोनों का पालन करना चाहिए।
चौथा भांगा- वसति के 60 हाथ के बाहर धोया-पकाया हो तो अस्वाध्याय नहीं होता है। वसति शुद्ध कहलाती है। मनुष्य का रुधिर दीखने पर एक अहोरात्रि का अस्वाध्याय होता है।
14. अशुचि- मनुष्य का शारीरिक मल अशुचि कहलाता है। जब तक मनुष्य का मल दिखता रहे या उसकी गंध आती रहे तब तक अस्वाध्याय रहता है। तिर्यंच के मल की दुर्गन्ध आती हो तो अस्वाध्याय होता है, अन्यथा नहीं। जहाँ मनुष्य के मूत्र की दुर्गन्ध आती हो ऐसे मूत्रालय आदि के निकट अस्वाध्याय होता है। जहाँ पर नगर की नालियाँ-गटर आदि की दुर्गन्ध आती हो वहाँ भी अस्वाध्याय होता है। अन्य कोई भी मनुष्य या तिर्यञ्च के शारीरिक पुद्गलों की दुर्गन्ध आती हो तो उसका भी अस्वाध्याय होता है। ___ 15. श्मशान- श्मशान भूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ तक अस्वाध्याय माना जाता है।