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64... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण के व्यन्तरादिकृत घोर गर्जना होना, बिजली का कड़कना अथवा बिजली का गिरना निर्घात कहलाता है। निर्घात होने पर दो प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
6. यूपक- शुक्ल पक्ष की एकम, बीज और तीज के दिन सूर्यास्त होने एवं चन्द्र अस्त होने की मिश्र अवस्था का काल यूपक कहलाता है। इन दिनों रात्रि के प्रथम प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है।
7. यक्षादीप्त- यक्षाकार रूप में प्रकाश होना अथवा आकाश में प्रकाशमान पुद्गलों की अनेक आकृतियों का दृष्टिगोचर होना यक्षादीप्त कहलाता है। किन्हीं मतानुसार आकाश में जब तक यक्षादीप्त दीखता रहे तब तक अस्वाध्याय काल रहता है तथा किन्हीं के अभिप्राय से एक प्रहर तक अस्वाध्याय होता है।
8. धूमिका- अंधकारयुक्त धुंअर का गिरना धूमिका कहलाता है। कार्तिक से लेकर माघ तक चार महीनों का समय मेघों का गर्भमास कहलाता है। इन दिनों धूम्र वर्ण की सूक्ष्म जल रूप धुंध पड़ती है। यह धुंध जब तक गिरती रहे तब तक अस्वाध्याय काल रहता है। इस समय स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
9. महिका- अंधकार रहित सामान्य धुंअर का गिरना महिका कहलाता है। शीतकाल में श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुंध गिरती है। पर्वतीय क्षेत्रों में बादलों के गमनागमन करते रहने के समय भी ऐसा दृश्य होता है, किन्तु उनका स्वभाव धुंअर से भिन्न होता है अत: उनका अस्वाध्याय नहीं होता है। महिका (धूअर) जब तक गिरती रहे तब तक अस्वाध्याय काल रहता है।
10. रज-उद्घात- रज-धूल, उद्घात- आच्छादित होकर गिरना। आकाश में पवन वेग के कारण धूल का आच्छादित होना और उन रजकणों का गिरना रज-उद्घात कहलाता है।
आकाश में जब तक धूल छायी रहे तब तक अस्वाध्याय काल रहता है। निशीथभाष्य में बताया गया है कि तीन दिन तक निरन्तर सचित्त रज गिरती रहें तो उसके बाद स्वाध्याय के अतिरिक्त प्रतिलेखन आदि किसी प्रकार की आवश्यक क्रियाएँ भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सचित्त रज सर्वत्र व्याप्त हो जाती है।
औदारिक (मनुष्य-तिर्यञ्च) सम्बन्धी अस्वाध्याय __औदारिक, यह जैन पारिभाषिक शब्द है। मनुष्य एवं तिर्यञ्च जीवों का औदारिक शरीर होता है। 'उदारस्य भावः औदारः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार