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________________ अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन ...63 आवश्यकनियुक्ति आदि में स्वाध्याय के दो, तीन, पाँच आदि प्रकार कहे गये हैं। परवर्ती प्रवचनसारोद्धार आदि में यह उल्लेख पूर्ववर्ती ग्रन्थों के अनुसार ही किया गया है। ___ स्थानांगसूत्र में आकाश सम्बन्धी दस, औदारिक सम्बन्धी दस, महामहोत्सव सम्बन्धी चार, प्रतिपदा सम्बन्धी चार और संध्या सम्बन्धी चार ऐसे अस्वाध्याय के कुल बत्तीस प्रकार कहे गये हैं। उनका सामान्य वर्णन इस प्रकार हैआकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय आकाश अर्थात प्रकृति में होने वाले परिवर्तन सम्बन्धी अस्वाध्याय। इसके दस प्रकार निम्नोक्त हैं 2 1. उल्कापात- उल्का-तारा, पात-गिरना अर्थात बिजली गिरना, तारे का टूटना या स्थानान्तरित होना उल्कापात कहलाता है। तारा विमान के तिर्यक् गमन करने पर या देव के विकुर्वणा आदि करने पर आकाश में तारा टूटने जैसा दृश्य होता है। यह कभी लम्बी रेखायुक्त गिरते हुए दिखता है तथा कभी प्रकाशयुक्त गिरते हुए दिखता है। सामान्यत: आकाश में तारे टूटने जैसा क्रम प्रायः सदा बना रहता है, अत: जब वह विशिष्ट प्रकाश या रेखा युक्त हो तो अस्वाध्याय समझना चाहिए। उल्कापात होने पर एक प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है। __2. दिग्दाह- दिग्-दिशा, दाह- जलना अर्थात एक या अनेक दिशाओं में कोई महानगर या जंगल जल रहा हो, ऐसी अवस्था दिखाई देना दिग्दाह है। यह भूमि से कुछ ऊपर दिखाई देता है। दिग्दाह होने पर एक प्रहर तक अस्वाध्याय होता है। 3. गर्जन- बादलों का जोर से ध्वनि करना गर्जन कहलाता है। गर्जन होने पर दो प्रहर का अस्वाध्याय होता है, किन्त आर्द्रानक्षत्र से स्वातिनक्षत्र तक के वर्षा-नक्षत्रों में गर्जन होने पर अस्वाध्याय नहीं गिना जाता है। 4. विद्युत- बिजली का चमकना विद्युत कहा जाता है। बिजली चमकने या तड़तड़ाने पर एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है, किन्तु उपर्युक्त वर्षा के नक्षत्रों में इसका अस्वाध्याय काल नहीं होता है। 5. निर्घात- निर्घात का अर्थ है- दारूण या घोर। आकाश में बिना बादल
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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