SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय-2 अनध्याय विधि : एक आगमिक चिन्तन . जैन श्रुत साहित्य में शास्त्रों के अध्ययन (जिनवाणी को आत्मस्थ करने) के लिए जो काल निर्धारित किया गया है उस काल में शास्त्र का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है। इसके अतिरिक्त अन्य समय में शास्त्र अध्ययन करना अनध्याय कहलाता है। अत: आगम ग्रन्थों का अध्ययन योग्य काल में ही करना चाहिए। जैनागमों का अध्ययन करने के लिए त्रिकरण एवं त्रियोग की शद्धि, चित्त की एकाग्रता और विशिष्ट तप की साधना का होना भी आवश्यक है। इसे जैन शब्दावली में 'योगोद्वहन' कहा जाता है। योगवहन क्रिया को सम्पन्न करते समय अनध्याय सम्बन्धी दिवसों, तिथियों, देवकृत उपद्रवों एवं प्राकृतिक बाधाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि अनध्याय काल में अधीत सूत्रों का पुनरावर्तन एवं अनधीत सूत्रों का ग्रहण करने पर महादोष लगता है अत: योगोद्वहन अधिकार में अनध्याय-विधि की चर्चा करना परम अनिवार्य है। अनध्याय शब्द का प्रचलित अर्थ स्वाध्याय शब्द का प्रतिपक्षी अनध्याय है। अत: अनध्याय का शाब्दिक अर्थ समझने के लिए स्वाध्याय शब्द का सम्यक अर्थ समझना आवश्यक है। सामान्य व्युत्पत्ति के अनुसार 'सुष्ठ अध्याय: स्वाध्यायः' अर्थात सम्यक प्रकार से अध्ययन करना या वाचन करना स्वाध्याय है। इसका फलित यह है कि जिस काल या जिन परिस्थितियों में शास्त्राध्ययन या शास्त्रवाचन का निषेध किया गया है उनमें अध्ययन करना, अनध्याय काल है अथवा स्वाध्याय का प्रतिषिद्ध काल अनध्याय काल है। अनध्याय के प्रकार जैनागमों के तृतीय अंग स्थानांगसूत्र में अनध्याय (स्वाध्याय न करने योग्य काल) के बत्तीस प्रकार बतलाये गये हैं। आगमिक व्याख्यामूलक
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy