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x... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
संशोधन परम ज्ञानी आचार्य के निर्देशन में शिष्यों द्वारा किया जा रहा है । हो न हो इसमें कुछ खासियत अवश्य होनी चाहिए। शोध कार्य का यह आठवाँ खंड साधु-साध्वियों के विशेष उपयोगी होने पर भी उन्होंने इस पुस्तक प्रकाशन में सहयोगी बनने की इच्छा अभिव्यक्त की। उन्हीं की मेहनत के कारण यह पुस्तक सुज्ञ जनों के ग्राह्य बन पाई है।
आप मूलत: जयपुर के हैं परन्तु व्यापारिक दृष्टिकोण से मुम्बई में रहते हैं । साधु-साध्वी वैयावच्च, नित्य आराधना, मानव सेवा आदि में आप सदा प्रवृत्त रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी सरिताजी झाड़चूर स्वाध्याय निष्ठ एवं तप रुचिवन्त श्राविका है। वर्षीतप आदि अनेक तप साधनाओं से उनका जीवन अलंकृत है। आपने सुपुत्र श्रेयांस एवं सिद्धार्थ को महापुरुषों के नाम से ही नहीं अपितु वैसे संस्कारों से भी नवाजा है। ग्वालिया टेंक में आने वाले सभी संप्रदायों के साधुसाध्वी का आप माता- पितावत ध्यान रखते हैं। आचार्य श्री पद्मसागरजी म.सा., आचार्य कीर्तियशसूरिजी म.सा., उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि अनेक गुरु भगवंतों की महती कृपा दृष्टि आप पर बरस रही है।
पूज्य गुरुवर्य्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. से आपके परिवार का बहुत पुराना एवं आत्मीय परिचय रहा है। वर्ष में प्राय: एक बार पूज्या श्री जहाँ भी विराजती है आप दर्शन करने की भावना रखते हैं। आप जैसे श्रावकों का सहयोग मिलता रहे तो आज भी साधु-साध्वी अपनी आचार मर्यादाओं का पालन करते हुए श्रेष्ठ कार्य कर सकते हैं। सज्जनमणि ग्रन्थमाला प्रकाशन आपके लिए यह अभ्यर्थना करता है कि आप इसी प्रकार आत्मोन्नति के मार्ग पर सुप्रवृत्त रहें एवं जिनशासन श्रु महोदधि में अपना सहयोग देते रहें ।
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