________________
e
श्रुत यात्रा के Milestone श्री नवीनजी झाड़चूर परिवार
संस्कृत साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण श्लोक है
ज्वलति चलितेन्धनोऽग्नि विप्रतिकृतः पन्नगः फणा कुरूते। त्रायः स्वः महिमानं
क्षोभात प्रतिपद्यते हि जनः ।। जैसे अग्नि उत्पन्न करने के लिए ईंधन (लकड़ी) को चलित करना आवश्यक होता है। सर्प भी छेड़ने पर ही फण उठाता है, वैसे ही तेजस्वी लोगों के तेज को प्रसरित करने के लिए कोई न कोई निमित्त आवश्यक होता है।
प्रत्येक व्यक्ति में क्षमता है किन्तु तद्योग्य निमित्त मिलने पर ही वह प्रकट होती है। स्वाध्याय निष्ठ श्री नवीनजी श्रीमाल (झाड़चूर) अध्ययन रसिका साध्वी श्री सौम्यगुणा श्रीजी के जीवन में एक श्रेयस्कारी निमित्त के रूप में आए।
जैन धर्म ज्ञानालोक को सबसे बड़ा मंगल मानता है क्योंकि इसी के माध्यम से निज स्वरूप का बोध हो सकता है। यह ज्ञान आगमों के अध्ययन से प्राप्त होता है। आगम की अध्ययन विधि को जैन ग्रन्थों में योगोद्वहन की संज्ञा दी गयी है। शोध कार्य को अंतिम चरण देने से पूर्व योगोद्वहन जैसे आगमोक्त विषय पर आचार्यों का मार्गदर्शन एवं सहमति दोनों ही आवश्यक थी। ऐसे समय में सेवाभावी नवीनजी झाड़चूर ने पूज्य आचार्य भगवंत श्री कीर्तियशसूरिजी के आगमविद् शिष्य श्रीरत्नयशविजयजी म.सा. से इस कार्य को संशोधित करवाने की जिम्मेदारी ली। मुंबई महानगरी में दो वर्षों तक मुनि भगवंत के पास जा-जाकर किरीटजी जैन (सिन्धड़) एवं नवीनजी ने यह कार्य पूर्ण करवाया। ___ आप जवाहरात के व्यापारी होने से आपकी पारखी दृष्टि ने ज्ञान के क्षेत्र में भी रत्न की परख कर ली। आपके मन में विचार आया जिस शोध खण्ड का