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60... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण (ग) एकाद्येकोत्तरिकया वृद्धया दश स्थानकं यावद् विवर्द्धितानां । भावानां प्ररूपणा आख्यायते यस्मिन् तद् स्थानांगम् ।
नन्दी टीका, पृ. 227 105. उत्तराध्ययनसूत्र का दार्शनिक अनुशीलन, पृ.14 106. (क) समवायांगसूत्र, सू. 527, पृ. 179
(ख) नन्दीसूत्र, सू. 87 107. ज्ञातान्युदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा अथवा ज्ञातानि ज्ञाता ध्यानानि प्रथम श्रुतस्कन्धे धर्मकथा द्वितीये, यासु ग्रन्थ पद्धतिषु वा।
अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 4, पृ. 2009 108. उत्तराध्ययनसूत्र का दार्शनिक अनुशीलन, पृ. 19 109. नन्दीसूत्र, सू. 92 110. विशेषावश्यकभाष्य, गा. 551 111. उपपतनमुपपातो देवनारकजन्मसिद्धिगमनं तदधिकृतमध्ययनमौपपातिकमिदं चौपांगं वर्तते।
अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 3, पृ. 100 112. जैन साहित्य की बृहद् इतिहास, भा-2, पृ. 27 113. प्रज्ञापना, गा. 3 -उवंग सुत्ताणि खं. 2, पृ. 3 114. प्रज्ञापना टीका, पत्र 1 उद्धृत -जैन आगम साहित्य: मनन और मीमांसा
पृ. 228 115. उवंगसुत्ताणि, खण्ड 2, भूमिका पृ. 30 116. (क) गुरु के द्वारा शिष्यों को देश और काल के अनुसार जो ग्रन्थ सारणियाँ
दी जाती हैं, उन्हें प्राभृत कहा जाता है। अभिधान राजेन्द्र कोश, भा. 5,
पृ. 914 (ख) सम्पूर्ण शास्त्र के भिन्न-भिन्न भाग प्राभृत कहलाते हैं।
जैन प्रवचन किरणावलि, पृ. 368 117. जैनागम दिग्दर्शन, मुनि नगराज, पृ. 99-102 118. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ. 270 119. वही, पृ. 22 120. (क) नन्दीसूत्र, 78
(ख) पक्खिसूत्र, स्वाध्याय सौम्य सौरभ, पृ. 192 121. उत्तराध्ययननियुक्ति (नियुक्ति संग्रह) गा. 3