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जैन आगम : एक परिचय ...57
40. प्रभावकचरित्र, पृ. 54 41. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, डॉ. हीरालाल जैन, पृ. 55 42. जैन दर्शन का आदिकाल, पं. दलसुख मालवणिया, पृ. 7 43. स्थानांगसूत्र, प्रस्तावना पृ. 27 44. जिनवचनं च दुष्पमालकालवशात् उच्छिन्नप्रायमितिमत्वा भगवद्भिर्नागार्जुन स्कन्दिलाचार्य प्रभृतिभिः पुस्तकेषु न्यस्तम्।
योगशास्त्र स्वोपज्ञ वृत्ति, प्रकाश 3, पृ. 207 45. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ. 38 46. दसवेआलियं, भूमिका पृ. 27 । 47. प्रज्ञापनासूत्र, संपा. मधुरकरमुनि, पद-1, सू. 107 48. भगवतीसूत्र, संपा. मधुकरमुनि 1-1-1 49. बंभीए दाहिणहत्थेण लेहो दाइतो । आवश्यकचूर्णि, पृ. 156 50. अनुयोगद्वार, सू. 31 51. कालं पुण पडुच्च, चरणकरणट्ठा अवोच्छित्ति । निमित्तं च गेण्हमाणस्स, पोत्थए संजमो भइ ।।
दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पत्र 21 52. चउदस पुव्वा पण्णत्ता तं जहा।
(क) समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 14/93 दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णत्ता तं जहा।
(ख) समवायांगसूत्र, सू. 511 53. नन्दीचूर्णि, 75 54. सर्वश्रुतात् पूर्वं क्रियते इति पूर्वाणि उत्पादपूर्वाऽदीनि चतुर्दश।
(क) स्थानांगवृत्ति, 10/1 ... प्रथमं पूर्वं तस्य सर्वप्रवचनात् पूर्व क्रियामाणत्वात्।
(ख) समवायांगवृत्ति, पत्र 101 55. नन्दीसूत्र, सू. 93 56. वही, सू. 106 57. दुवालसंगे गणिपिडगे। समवायांगसूत्र, सू. 511 58. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ. 10-11 59. अहवा तं समवाओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा- अंग पविठं अंगबाहिरं वा।
नन्दीसूत्र, सू. 79